Monday, October 28, 2013

चश्मेबद्दूर

 अहोई अष्टमी का व्रत था बच्चो की माँ इस व्रत को करती हैं यह व्रत परंपरा से हमारे परिवार में नही किया जाता थापरन्तु बच्चोके हित की कामना से बस मैंने भी बच्चो के जन्म से कुछ दिन पहले ही इस व्रत को करने की मन्नत मान  ली थी मन ही मन में और फिर बड़े बेटे के जन्म के बाद से यह व्रत करती आ रही थी इस बार भी सुबह जल्दी सोकर उठी और जल्दी जल्दी सब काम निबटाने लगी  बड़ा बेटा पढाई की वज़ह से घर से बाहर दिल्ली  में हैं  उसको फ़ोन किया  ..छोटा बेटा देर रात तक पढता रहा था सो उसको सोने ही दिया उठाया ही नही १२ बज  गये थे माँ ने व्रत किया हो बेटे के लिय और वोह भूखा सोया रहे सोचकर मन में बुरा लग रहा था सो बेटे को आवाज़ लगायी कि उठ जाओ और बताओ क्या नाश्ता बने तुम्हारे लिय  क्योकि उसके खाने के नखरे बहुत ज्यादा हैं  उसने आँखे खोलते ही घड़ी की तरफ देखा और बोला" मम्मा!!  उठाया क्यों नही ........मुझे  तो ट्यूशन जाना था .अब पक्का लेट हो जाऊँगा "
और तेजी से बाथरूम मैं घुस गया .. मैंने भी जल्दी से एक गिलास ढूध गर्म कर  और टोस्ट सेंक कर रख दिए कि लो जल्दी से खा लो एक घंटे बाद वापिस आओगे तब तक मैं खाना बना लूंगी ....  उफ़ माँ लेट हो रहा हूँ और आपको ढूध की पडी हैं  .
                                                                         मैंने जल्दी से एक मुठी बादाम उसको ज़बरदस्ती दिए अच्छा यह चबा लेना ..... . ट्यूशन से आते आते उसको  ३ बज गये कि माँ आज टीचर ने देर तक पढ़ाया मैंने कहा कि आओ खाना बना हुआ हैं  खा लो  तुम्हारा मनपसंद मटर पनीर बनाया हैं
                                            तब एक दम से बेटा बोला" नही माँ चार बजे आप कथा करोगी न तब खाऊँगा अभी जरा प्रोजेक्ट बनाने दो डिस्टर्ब ना करो "मुझे बहुत गुस्सा आया पर व्रत बेटे के लिय था तो उसको ही कैसे  कुछ कहती सो चुप रह गयी ..... और रसोई में  चली गयी ... तभी बेटा पीछे से वहां आया और हग करके बोला पापा के लिय व्रत रखा था तो कितना अच्छा तैयार हुयी थी चूड़ियां माला साड़ी पहन कर आज मेरे लिय भी तैयार होवो ना  .....मैंने कहा आज घर पर रहना हैं मंदिर जाकर पूजा नही करनी तो ऐसे ही ठीक हूँ साफ सूट तो पहना हैं बोला नही अच्छा सा सूट पहनो और अच्छे से तैयार हो जाओ ....  मैंने भी बेटे का मन रखने के लिय अच्छा सा सूट पहना औरअछे से तैयार होकर  चार बजे कथा शुरू की ........ और कथा के बाद बेटे को कहा कि अब तो कुछ खा लो सुबह से व्रत रख कर बैठे हो  ..बोला माँ अभी नही भूख लग रही सच में ........और हाँ एक बात तो बताओ जब पति अपनी पत्नी के लिय करवाचौथ का व्रत रख सकता तो क्या एक बेटा अपनी माँ की लम्बी उम्र के लिय व्रत नही रख सकता  मैं भी आज आपके साथ ही खाना खाऊँगा ...... मन एकदम से मौन हो गया अपने छोटे बेटे की बाते सुनकर ........ पापा के बाहर रहने से कितना परिपक्व सोचने लगा हैं मेराराजा बेटा  फिर भी मैंने जिद करके उसको एक गिलास ढूध पिलाया कि ढूध पी  सकते हैं ......तभी पति का फ़ोन आगया कि वोह आज रात घर आरहे हैं ८ बजे के बाद पहुँच जायेंगे पर हम व्रत का खाना खा ले क्युकी हम तारा देखकर खाना खाते हैं  ... बेटे ने कहा नही पापा आपके साथ ही खायेंगे आप आ तो जाओ जल्दी से .......
 मैं भी आकर नेट पार ब्लॉग देखने लगी क्युकी बेटे की जिद के सामने मेरी एक न चली .... ६ बजे के बाद मैंने कहा बेटा अब तारे निकल आये हैं मैं अर्क देती हूँ और उसके बाद मंदिर जाकर पंडितानी जी को बायना  देकर आती हूँ फिर एक साथ खाना खायेंगे ...... बेटा बोला माँ अभी आप सिर्फ खाना खा लो मैं  पापा के साथ खाना खाऊँगा .मैंने कहा ठीक हैं फिर मैं भी तभी खाना खाऊँगी .... और मंदिर चली गयी वहां से वापिस लौट रही थी कि रस्ते में  ना जाने क्या हुआ कि  मैं चक्कर खा कर गिर गयी और घुटने  और कोहनी मैं बहुत जोर  से चोट लगी खून बहने लगा     पड़ोसियों ने सहारा देकर घर तक पहुँचाया मुझे तो लगा कि आज घुटने की हड्डी गयी मेरी .......... बेटे ने कहा माँ जल्दी से   सिटी हॉस्पिटल चलते हैं .और  मेरे सेल से उसने डॉ गुप्ता को फ़ोन कर दिया और मुझे लेकर वहां पहुंचा   वहां सारे चेक- अप के बाद डॉ ने कहा कि कोई खास बात नही पट्टी बाँध  देते हैं घाव पर और गुम  चोटों के लिय  बर्फ की सिकाई कर देते हैं ...बेटा मेरा हाथ थामे वही खड़ा रहा ....... दर्द बहुत तेज था मेरे आंसू बहने लगे ...... बेटा बोला देखा ....  कहा था न व्रत न रखा करो   अब मैं हूँ ना आपके पास .  डॉ से वापिसी पर उसने मुझे  एक अच्छा सा कोफी मग लेकर दिया मैंने पुछा यह क्यों ????बोला जब हमें बचपन में इंजेक्शन लगता था तो आप भी कुछ न कुछ लेकर देती थी न  ...... मन भावुक ही हुआ जा रहा था ..... खैर घर पहुंचे तो मैंने कहा चलो खाना खा लेते हैं फिर  बोला आप बैठो और उसने मुझे व्रत का खाना  जो मैंने शाम को बनाकर रख दिया था सर्वे किया ....और मेरी थाली से सिर्फ एक ग्रास खाया ...... .  रात  को ९ बजे जब उसके पापा आये तब दोनों ने खाना खाया ....औरबाते करते करते  पापा से कहने लगा कि पापा आप ही बताओ कि यह व्रत सिर्फ मम्मी ही क्यों करे .हम सब क्यों न करे  ..... उसके पापा ने कहा कि बेटा आज तूने किया न माँ के लिय व्रत तो आज तेरी माँ के उप्पर आये कष्ट इतने में टलगये   ईश्वर तेरे जैसा प्यारा बच्चा सबको दे ........... क्या कहूँ अब मैं ???........ कैसे गुस्सा करू उस बेटे को कि तेरा ध्यान पढाई में क्यों नही लगता ..... जबकि जिन्दगी के सबक तो तुम कितने अच्छे से पढ़ रहे हो और उम्दा नंबर से पास भी हो रहे हो
 इन किताबी  नम्बरों   का क्या करूँ ...................  बस इश्वर से यही प्रार्थना हैं कि  यह संस्कार और  विवेक हमेशा रहे   और दुनिया की गरम हवा तुमको छु भी न पाए ....चश्मेबद्दूर ........

Wednesday, October 9, 2013

दिल के अरमान आंसू में बह गये

खट से जो दरवाज़ा खोला सामने तुम थे , मुह ढक कर सोये से ,दिल से जोर से धड़क उठा , हाथ  कंपाने लगे  आँखे भर आई , कितने दिन बाद तुमको देखा ना  सबकी जिद थी तुमसे दूर रहू   कोशिश भी बहुत की  पर तुम बहुत शिद्दत से याद आये , चुपके चुपके तुमको याद करती थी  पर डरती थी किसी को भी कहते कि  मुझे तुम्हारी याद आ रही हैं  तुमने भी शिद्दत से याद नही किया मुझे  वरना शाहरुख़ कहता हैं न  ज़र्रे  ज़र्रे  ने मिलाने की साजिश की हैं मुझे तो तुमसे दूर करने की साज़िशे  रची इस कमबख्त दुनिया ने , बहुत चाह तुम्हे मैंने . दिल किया जल्दी से तुम्हे छु लू भर लू बाहों में  चूम लू तुम्हारा माथा ,भूल जाऊ सुध - बुध , खोजाऊ असीम आनंद में तुम्हारे संग  वक़्त का पता ही न चले कब हम एक दुसरे के करीब आये ,हर भाव मन के मैंने तुमसे शेयर किये  प्यार वाले भी और उनसे हुए झगडे  वाले भी , सच्ची कसम से  तुम मुझसे अलग नही . बेवफा !! तुमको मेरी क्या परवाह तुम्हे कोई भी अपना ले उसके हो जाते हो पर तुम्हे मेरे अलावा कोई और छु दे तो  मेरा दिल
घबराता हैं , कितना अजीम है न तेरा मेरा रिश्ता ,तुम्हारे दुसरे रूपों ने मुझे लुभाने की कोशिश की पर सिर्फ तुम्हारी दीवानी हूँ , तुम्हे और भी मिल जायेंगे साथ !! पर ..मेरा क्या होगा ? कभी सोचा .. मेरे अकेलेपन के तुम्ही सहारे हो साथी हो ..जाओ मत बनाओ न मुझे अपना आदि ,इतना एडिक्शन अच्छा नही न तेरा ,
  अच्छा प्रॉमिस पहले की तरह नही आऊंगी तुम्हारे करीब , पक्का  पर अहसान मंद हूँ तुम्हारी  तुमने मुझे मेरी इनर सोल से जो मिलवाया  सुन!! अब नही रहा जा रहा मुझसे  इतने दिन बाद मिली हूँ  तो ... कुछ न कुछ तो लिखना बनता है न मेरा तुझको ,तुझपर,
अब आते जाते नजर जो पढ़ रही हैं तुम पर  .इतने दिन की छुटिया बिता कर आई हूँ   .. आओ न तुम भी बताओ न मेरे पीछे  क्या क्या हुआ ?

 अरे बेटा  !!! जरा इस कंप्यूटर को मेरे कमरे  में रख दो और  वाई-फाई  बंद कर दो
 वरना यह नीलिमा फिर से फेसबुक खोल कर निविया बन जायेगी और खो जायेगी उसी दुनिया में !!! ...:D




दिल के अरमान आंसू में बह गये  .हम कंप्यूटर के प्रेम में तनहा रह गये उफ्फ्फ मेरा कंप्यूटर !!! और मेरा उसके साथ प्रेम सबको इतना चुभता क्यों हैं ?

Sunday, October 6, 2013

पालतू जानवर गाय आज/ कल

 आज फिर से  दुधिया नही आया। .बहुत मुश्किल लगता हैं  डोलू लेकर   ढूध की डेरी पर जाकर लाइन में खड़े हो   जाना और इंतज़ार करना अपनी बारी का   तो उसको कह दिया भैया  जी घर पर ही ढूध दे जाया करो   और अब सुकून से घर पर ढूध  का इंतज़ार करते
……                                                                                           आज कल ढूध कुछ पीलापन लिए हैं  तो बच्चे  पीने में आनाकानी करने लगे   उनको लगता हैं  या आपने हल्दी मिलाकर पीने को दिया  या फिर ढूध वाले अंकल  जरुर कुछ मिलावट करते होंगे ,  अब यह मेरे शहरी बच्चे क्या जाने , जब गाय  का ढूध आएगा तो पीला ही होगा न। ……ग़ाय के नाम पर मायका याद आ जाता हैं  और बचपन भी। ……… किसान परिवार तो  घर में गाय का होना लाजिमी था बड़ा परिवार आखिर कहा से बाहर के ढूध से पूरा पढता फिर सबको ढूध  के इलावा  दही लस्सी और घर का माखन भी चाहिए होता था  और घर आने जाने वालो को लस्सी और ढूढ़ पिलाया जाता न की यह जहर जैसा कोला लिम्का ।  सो पापा ने हमेशा घर में गाय पाली ……।मुझे आज भी याद हैं जब पापा काली गाय लेकर आये थे मेरठ से  और हम सब भाई बहन इंतज़ार कर रहे थे  किअभी तक तो सफ़ेद गाय हैं घर में  यह विलायती  काली गाय कैसे होगी। …। और जब देखा तो ना जाने क्यों और  कब एक मोह सा जाग उठा  उस गाय को लेकर। माँ मुह अँधेरे उठ जाती और उनका पहला काम ही यही थाकि  सुबह उठकर घेर( वोह घर जहाँ पर पालतू
मवेशी रखे जाते हैं ) में जाना और वहां पर गाय की सानी करना और पानी पिलाना। । फिर  उनको नहला कर उनके नीचे से गोबर  हटाकर स्थान (छप्पर)को साफ़ करना। हम कब माँ के साथ यह सब काम करने लगे याद भी नही  अब कई बार माँ के घर से बाहर  जाने पर खुद ही भूसा दाल  कर उस में बिनौले  और सरसों की खली मिलाकर   सानी कर देते थे फ़िर धीरे धीरे माँ से ढूध धुहना भी सीख लिया    घर में दो गाय थी  तो उनका गोबर भी उठाकर कई बार तसले में भरकर छत पर  ले जाते और फिर माँ उसके उपले बनाती  तो हम भी बहादुर  के साथ माँ की हेल्प करते  और कभी कभी हम भी छोटे छोटे छेद  करते थे उन उपलों में किसी न किसी सलाई या लकड़ी से। धीरे धीरे माँ ने उपले बनाने भी सिखाये। … तब कभी मना भी करते तो माँ कहती कि  लडकियों को सब काम करना आना चाहिए   क्या पता कैसे घर में शादी हो जाए, और जानवर को जानवर नही घर कासदस्य  मान कर उसके सब काम करोगे  तो कभी कोई काम गन्दा नही लगेगा और छोटा भी नही लगेगा । ……… और ना जाने क्यों किसी अन्य जानवर को पालतू रूप में स्वीकार करने का मन नही किया आज तलक। …।  गाय को देखते ही आज भी न सिर्फ आदर भाव आता हैं अपितु माँ की सी भावनाए आती हैं अपनी माँ का उनसे जुड़ाव याद करके।  अब शहर में रहने लगे हैं तो ढूध में स्वाद ही कहाँ माखन जितना मर्ज़ी अमूल का खा ले जो तृप्ति सफ़ेद वाले ताज़े ताज़े में वोह अब  कहा। ……।
                                                                                   मन तो करता हैं अभी भी मेरे घर में गाय हो जैसे माँ के घर आज भी हैं तीन गाय। परन्तु स्थान की कमीबच्चो का नाक-भो सिकोड़ना   और सबसे बड़ी बात  अब सब करेगा कौन। ……अब तो आदत पढ़ गयी न। । अब क्या  मैं गोबर उठा पाऊँ गी ?क्या मैं सुबह उठकर बेड टी  का मोह त्याग कर पहले गायमाता की सेवा कर सकुंगी ………. अब सो कॉल्ड  मोडर्न वाइफ बन गयी हूँ न। … अब पड़ोस की डेरी से जब तब गोबर की दुर्गन्ध आ रही हैं कहकर बच्चे परेशान हो जाते हैं  तो क्या मैंने जब गाय का काम करूंगी तो  उनको मेरे पास से एक अजीब सी स्मेल  आएगी … गाय के प्रति प्रेम   और उसको पालने की अभिलाषा  मन के अन्दर किसी कोने मैं हैं  जो अब बस कभी कभार एक रोटी या गुड देने के साथ सीमित हो गयी हैं । समय के साथ साथ खुद को बदलना पढता हैं  कल कहना ही पड़ेगा ढूधिये को कि  भैया भैंस का ही ढूध  दे जाया करो कम से कम बच्चे पियेंगे तो सही .........................
                                                                                        अब पालतू गाय का ज़माना चला गया  अब उनका स्थान सिर्फ तबेलो में ही रह गयी हैं