Friday, December 26, 2014

सिसकिया


'अकेली होती हूँ तो आपकी यादे चारो तरफ से घेर लेती हैं , कानो में आपकी आवाज़े गूंजती हैं और मैं यहाँ इस नदी के किनारे पर आकर बैठ जाती हूँ और एक चलचित्र की तरह यादे चलती रहती हैं सामने , पर मुझे लफ्ज़ नही मिलते उन यादो को लिखने के लिय ,समेटने के लिय बस अहसासों में जी लेती हूँ 
मेरी सुबकिया

सिसकिया किसी के लिय मायने नही रखती मेरेआंसू भरी आँखे जब जाते हुए बरस को मुड़ कर देखती हैं तो एक आह निकल जाती हैं एक टीस उभर आती हैं और मैं फिर से उदास होकर आपको याद करने लगती हूँ | अनेक पश्चाताप मन में आते हैं अब जब सबसे सुनती हूँ आपके दर्द की कहानिया और नाराजगी होती हैं अपनी बेबसी से और बुरा लगता हैं अब अपना मौन | काश मैंने भी आपका दर्द महसूस किया होता काश कुछ भागीदार होती आपकी तो एक स्पर्श मेरा भी होता कि इश्वर पर भरोसा रखो सबका अपना अपना भाग्य ...... न किस्मत ले सकते हैं ना दे सकते हैं किसी को , कम से कम दिलासा तो होता आपको कि दर्द तनहा नही पिया आपने ......... मिलोगे न आप क़यामत के रोज़ .माफ़ी मांगनी हैं आपसे . काश यह प्रकृति भी मेरे मन को शांत कर पाती जितना आपने अपने मन को शांत रखा था | प्लीज लौट आओ न किसी भी बहाने से / मेरा मन बहुत उदास हैं आपके चले जाने से 

Wednesday, December 17, 2014

अंतिम मिलन

आज मिल रही हैं धरती अपने आसमान से शायद आखिरी बार , ख़ामोशी से आसमान आज उतर आया धरती की आलिंगन करने | पिता आसमान ही होता है ना और माँ धरती , धरती पुकारती रही आसमान को ...............
आसमान की रही होगी कुछ अपनी मजबुरिया , जार जार रो रहा हैं आज आसमान , कैसे कहे विदा अपनी इस धरती को जिसने न जाने कितनी बार सहे भूकंप कितनी बार सैलाब आये पर फिर भी साथ रही आसमान के . क्षितिज तक साथ उनका पर फिर भी आज अलग थलग .से दीखते रहे .. आज आसमान चाहता था धरती को दर्द से मुक्त करना . और धरती अपने दामन में अपने हिस्से के दर्द चीत्कारे आहे गम लेकर सो रही हैं और उसका अचेतन मन मांग रहा हैं मुक्ति इन सबसे .....पर सब तक साँस हैं तब तक आस हैं धरती के हर पौधे को हर पेड़ को .जिन्दगी की .चमत्कार की


 यह वो दिन था जब भापा  जी ( पापा) माँ से मिलने हॉस्पिटल गये थे  और माँ कोमा में चली गयी थी उनका इंतज़ार करते करते ...और कभी न लौट कर आई और पापा भी दो महीने बाद उनके पास चले गये 

मन का कोना

माँ को अभी गये १० दिन हुए थे और मैं आंसू पोंछ कर उनके घर पर थी उनके एकलौते बेटे की शादी थी रिश्ता तो ससुराल से था परन्तु मायके से एक ही गोत्र होने के कारन उन्होंने अपने बेटे को मुझसे राखी टिक्का कराया क्युकी उनकी अपनी कोई बेटी न था | कई बरस मैंने उनके देने के बावजूद राखी पर कोई शगुन नही लिया की जब कमाएगा तब देगा | समय गुजरता गया नौकरी लग गयी उनके बेटे के , मुझे भी राखी पर उपहार मिलने लगे सब ठीक सा रहा अपने भाइयो के साथ मैंने उनके बेटे को भाई मान कर हमेशा जन्मदिन दीवाली पर उपहार दिए . बेटे की शादी तय होने लगी मुझे बहन बनाकर साथ ले गये परन्तु उसके ससुराल वालो के लिय मैं बस उनकी रिश्तेदार थी , रिश्ता ना चाहते हुए भी वही हो गया , मेरे भाई के गुजर जाने पर जैसे सब अचानक बदल गया \ खुद तो वोह आई मेरे भाई की मृत्यु पर अफ़सोस करने परन्तु अपने बेटे को नही आने दिया न कोई कॉल आया उसका .की मत रोवो मैं भी तो हूँ न तुम्हारा भाई | मन को समझाया हलके स्वर में शिकायत भी की तो बोली मैं क्या करू आजकल के बच्चे ऐसे ही हैं क्या पता उसने कॉल किया हो तुमने ही न उठाया हो | अब राखी पर मैं अपने होम टाउन में थी एक दम अकेली , ४८ घंटे तक मैंने घर का ताला भी नही खोला २४ घंटे तक एना का दाना भी मुंह में नही लिया जवान भाई के जाने का गम सीने में लिय जार जार रोटी रही मेरी इतनी उम्र में पहली राखी ऐसी गुजरी जब मैंने किसी कलाई पर राखी नही बंधी , सब भाई बहन अपने अपने घर के कोने में रोते रहे पर उस भाई ने एक बार भी कॉल नही की की मैं हूँ ना ! , बस मेरे नाम का एक सूट डेल्ही में बच्चो के पास छोढ़ दिया की राखी के नाम का , तब भी बुरा लगने के बावजूद मैंने कुछ नही कहा | रिश्ते हैं निभाने पढ़ते हैं कई बार वैसे भी मेरी तस्वीर कुछ और ही बनायीं हैं उन्होंने सब जगह . माँ का ग्यारहवा दिन और उनके उसी एक्लोते बेटे की सगाई ...मैं आंसू पोंछ कर सबसे आगे मौजूद थी जिम्मेदारी से सब सम्हालते हुए अगले रोज बारात में सब आंसू संताप भूलकर फिर से बारात से लेकर बहु को घर लाने तक सब रोले अदा किये ...... करवाचौथ से दीवाली तक सब त्यौहार का नेग लेकर उनकी बहु का शगुन किया ..............आज भाई दूज हैं और मैं दिल्ली में ही हूँ .............और वोह भाई नही आया क्युकी माँ का कहना हैं उसके साले ने आना हैं ...........उसकी बहु आगयी अब ---------- कहाँ सुनते हैं आजकल के बच्चे माँ की बात _______ अब क्या कहूँ मैं भी ..........जब मेरा अपनाछोटा भाई नही रहा तो दूसरा कहाँ भाई बनेगा . रिश्ते भावनाओं से बनते हैं सुना था पर आज जब मुझे भावनात्मक सपोर्ट की जरुरत थी तो कहाँ गये वोह राखी के धागे ............ और मैं बेवाकूफ अपनी माँ के लिय सही से रो भी न पायी कि किसी के ब्याह का शगुन ख़राब न हो ......................... मन बहुत आंदोलित हैं कोई कुछ भी कहे अब मैं हर्ट हूँ तो हूँ बस
मन का कोना ........कभी कभी खोलना ही पड़ता हैं ...