आज मन बहुत कुछ सोच रहा है ढेर सारे सपने ओर साधन सिमित .मन की उडान बहुत ऊँची होती है ओर दुनिया की धरती बहुत ही सख्त मन उरना भी चाहे तो कितना उरः लेगा .में उर्हती भी हु तो अपने होसलो से .बस होसले नही टूटने नही चाहिय ..अपने होसलो की कितनी परवाह रहती है न सबको ...
मेरे मन का पक्षी
अपने छोटे से घोसले मई बेठे बेठे
कई सपने बुनता है
कई सपने सच भी हो जाते है
कई सपने अधूरे भी
यह मन तब भी अनगिनत
सपने देखना नही भूलता
बस मेरे मन का पाखी
हवा क झोंके से
तेज़ दोर्हता हुआ
दूर तक चला जाता है
मन को कभी एक
संतुष्टि का भावः मिलता है
कभी असंतुष्टि का
मेरे aहसास कभी मरते नही तब भी
तब देखती है ये नीलिमा एक नया सपना
चाहे पूरा हो या न हो
सपने न देखू तो शायद मेरे अहसास
ही मर जायेगे ...........................................नीलिमा शर्मा