Monday, November 25, 2013

आरुषि हत्याकांड . ::कसूरवार कौन?

आरुशी ह्त्या कांड ........माता पिता ने क्षणिक आवेश में आकर अपनी ही बेटी का कतल कर डाला और साथ ही उसका साथ देने वाले अपने नौकर का भी ....... उस एक पल में उनका गुस्सा इतना भयावह हो गया कि वोह भूल गये कि उनकी इकलोती बेटी हैं अगर  उन्होंने अपनी बेटी को अपने नौकर के साथ आपतिजनक स्तिथि ( जैसा की कहा जा रहा हैं ) में देखा तो एक प्रश्न उठना तो जायज है ना कि आरुशी ने ऐसा क्यों किया . नौकर औरआरुषि हम उम्र नही थे / अगरपुरुष नौकर रखा हुआ था तो क्या नुपुर तलवार को समय से घर नही आना चाहिए था / क्या एक माँ को उम्र के इस मोड़ पर अक्सर घर पर अकेले रहने वाली बेटी से दोस्ताना सम्बन्ध नही बनाने चाहिए थे / क्या एक पिता जो अपनी बेटियों के लिय हमेशा रक्षात्मक मुद्रा में रहता हैं उसको पहले कभी आभास भी नही हुआ अपनी बेटी और नौकर के बीच के रिश्ते के बारे में / उनकी और कोई संतान नही थी तो उन्होंने समर्पण क्यों नही किया पुत्री की आवेग में की गयी ह्त्या के बाद / उस महिला की जिन्दगी कितनी ख़राब हुयी होगी जिसका रिश्ता राजेश तलवार से जोड़ कर उसे कटघरे में खड़ा कर दिया गया था / नुपुर और राजेश तलवार ने एक जघन्य कृत्य किया हैं परन्तु हेमराज का कसूर भी कम नही साथ ही आरुशी का भी ..हाँ उनको जो सजा दी गयी वोह नही मिलनी चाहिए थी अपनी बच्ची को समझा बुझाकर अपने में बदलाव लाकर दो परिवारों को बर्बादी से बचाया जा सकता था .... मेरी तो बिनती हैं उन काम  काजी महिलाओ से जो अपनी आर्थिक स्वतंत्रता के नाम पर अपनी बेटियों को अकेले छोड़ जाती हैं kachhi उम्र की लडकिया इन्टरनेट और टी.वी से प्राप्त ज्ञान से बहुत जल्दी बड़ी हो जाती हैं और सही गलत  भूल जाती हैं ....दादी और नानी के साथ रहना आजकल के बच्चे भी गवारा नही करते क्युकी उनके मन में अपरोक्ष रूप से उनकी माँ ही स्वतंत्रता का पाठ पढ़ा रही होती हैं अपनी स्वतंत्रता के नाम पर ........ समाज में आज अगर यह विसंगतिया आरही हैं उसके जिम्मेदार सिर्फ पुरुष नही हैं महिलाए भी हैं और संतान को दी जाती उनकी शिक्षा भी ............... एक परिवार का वातावरण अगर सही हो तो कोई भी लड़का या लड़की ऐसे किसी के बरगलाने में आकर अपना जीवन ख़राब नही करती और नाही संयुक्त परिवार के बच्चे मानसिक रूप से इतने कमजोर होते हैं कि जल्दी से दूसरो के प्रभाव में आजाये .......... समय की मांग हैं हमें अपने पारावारिक ढांचों की एक बार फिर से समीक्षा करनी होगीबच्चो पर विश्वास करे लेकिन अंधा नही उनकी मन की और शरीर की भाषा भी पढ़ना सीखे ....... पैसे कमाना एक कला हैं तो परिवार सम्हालना भी विज्ञान ......... ऐसा न हो कल विदेशो की तर्ज़ पर यहाँ भी गुड पेरेंटिंग की कक्षाए लगने लगे और घर के बुजुर्ग किसी वृद्ध आश्रम में सिसकिया लेते रहे .आज की युवा पीढ़ी कल बुजुर्ग होगी ......याद रहे ...........समय हैं आरुशी हत्याकांड से अपने आस- पास का वातावरण सुधारने का .न की तबसरा करने का / कोर्ट  की सजा /गुनाह  ठहराना  एक दम जायज  और  आने वाले समय में माता - पिता  को सबक .........
 नीलिमा  शर्मा 

Monday, November 11, 2013

13 नवंबर: लक्ष्मी कृपा पाने का एक और दिन, करिए इन में से कोई 5 काम...साभार दैनिक भास्कर . कॉम

कार्तिक माह की अमावस्या यानी दीपावली के बाद लक्ष्मी कृपा दिलाने वाला एक और खास दिन आ रहा है। यह दिन है बुधवार, 13 नवंबर 2013. कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष में आने वाली एकादशी को देवउठनी एकादशी या देवप्रबोधिनी एकादशी कहा जाता है। इस एकादशी से महालक्ष्मी के स्वामी यानी भगवान विष्णु पुन: जागते हैं। इसके पूर्व आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी से श्रीहरि शयन करते हैं और चार माह बाद कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को पुन: जागते हैं। श्री विष्णु के शयन काल में सभी मांगलिक और विवाह आदि कार्य वर्जित रहते हैं। भगवान विष्णु के जागने का दिन होने की वजह से य यह बुधवार काफी खास है, इस दिन कुछ उपाय कर लिए जाए तो महालक्ष्मी की कृपा भी बहुत जल्द प्राप्त हो जाती है।
इस बुधवार से सभी मांगलिक कार्य पुन: प्रारंभ हो जाएंगे।
शास्त्रों के अनुसार जो लोग इस एकादशी पर व्रत रखते हैं उनके सभी पाप नष्ट होते हैं और महालक्ष्मी की प्रसन्न प्राप्त होती है।
- देवउठनी एकादशी पर तुलसी और शालिग्राम का विवाह रचाया जाता है। जो भी लोग इस परंपरा का निर्वाह करते हैं उनके घर में स्थाई लक्ष्मी वास करती हैं और जीवनभर धन-दौलत की कोई कमी नहीं होती है। यदि आप तुलसी विवाह नहीं रचा सकते हैं तो कम से कम तुलसी का विशेष पूजन अवश्य करना चाहिए।
- यदि आप चाहे तो इस एकादशी पर व्रत भी रख सकते हैं। व्रत करने पर अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है और भगवान विष्णु के साथ ही महालक्ष्मी की भी विशेष कृपा प्राप्त होती है। व्रत रखने वाले व्यक्ति को दशमी तिथि यानी मंगलवार से ही शुद्ध-सात्विक भोजन करना चाहिए। इसके बाद एकादशी के दिन सुबह जल्दी उठें और नित्य कर्मों से निवृत्त होकर विष्णु एवं लक्ष्मी की पूजा करनी चाहिए। भगवान को तुलसी के पत्ते भी चढ़ाएं। द्वादशी तिथि यानी गुरुवार के दिन सुबह विष्णु पूजा के बाद गरीब और जरूरतमंद व्यक्ति को भोजन कराएं। इसके बाद स्वयं भी भोजन करें।
एकादशी के दिन सुबह जल्दी उठें और तांबे के लोटे में जल लें और उसमें लाल मिर्ची के बीज डालकर सूर्य को अर्पित करें। इस उपाय से आपको मनचाहे स्थान पर प्रमोशन और ट्रांसफर मिलेगा। यह उपाय नियमित रूप से करना चाहिए।
किसी ऐसे शिव मंदिर में जाएं जो श्मशान में स्थित हो। उस मंदिर में शिवलिंग पर दूध, जल आदि अर्पित करें। दीपक लगाएं। इस उपाय स्थाई लक्ष्मी की प्राप्ति होती है। - इस दिन सुबह जल्दी उठें और नित्य कर्मों से निवृत्त होकर तुलसी के पत्तों की माला बनाएं और इसे महालक्ष्मी को अर्पित करें। ऐसा करने से धन में वृद्धि होगी।
- एकादशी की शाम को किसी मंदिर में एक सुपारी और तांबे का लोटा रख आएं। इसके साथ ही कुछ दक्षिणा भी रखें। इस उपाय से भी देवी-देवताओं की कृपा प्राप्त होती है। - इस दिन यदि संभव हो सके तो किसी किन्नर से उसकी खुशी से एक रुपया लें और इस सिक्के को अपने पर्स में रखें। बरकत बनी रहेगी।
- एकादशी की रात में लक्ष्मी और कुबेर देव का पूजन करें और यहां दिए एक मंत्र का जप कम से कम 108 बार करें। मंत्र: ऊँ यक्षाय कुबेराय वैश्रववाय, धन-धान्यधिपतये धन-धान्य समृद्धि मम देहि दापय स्वाहा।
रात को सोने से पहले किसी चौराहे पर तेल का दीपक जलाएं और घर लौटकर आ जाएं। ध्यान रखें पीछे पलटकर न देखें। - किसी शिव मंदिर जाएं और वहां शिवलिंग पर अक्षत यानी चावल चढ़ाएं। ध्यान रहें सभी चावल पूर्ण होने चाहिए। खंडित चावल शिवलिंग पर चढ़ाना नहीं चाहिए।
प्रतिदिन पूजन के बाद घर के सभी कमरों में शंख और घंटी बजाना चाहिए। इससे घर की नकारात्मक ऊर्जा और दरिद्रता बाहर चली जाती है। मां लक्ष्मी घर में आती हैं। - घर में लक्ष्मी को आमंत्रित करने के साथ ही उन्हें सहेज कर रखने के जतन करना भी महत्वपूर्ण है। इसलिए, नकदी और गहने-जेवरात की अलमारियां दक्षिण या पश्चिम की दीवारों पर हों और उत्तर या पूर्व की ओर खुलें। ख्याल रहे, इन अलमारियों पर दर्पण न लगा हो।
- लक्ष्मी, भगवान नारायण की पत्नी हैं और नारायण को अत्यंत प्रिय भी हैं। उनकी उत्पत्ति समुद्र मंथन से हुई है। शंख, मोती, सीप, कौड़ी भी समुद्र से प्राप्त होने के कारण नारायण को प्रिय हैं। अत: लक्ष्मी पूजन में समुद्र से प्राप्त वस्तुओं का उपयोग अधिक किया जाता है। अत: जब भी लक्ष्मी पूजन करें ये चीजें जरूर रखें। पूजन के बाद इन चीजों को धन स्थान पर स्थापित करने से धन वृद्धि होती है।
इस दिन लक्ष्मी-विष्णु के बाद प्रमुख द्वार पर लक्ष्मी के गृहप्रवेश करते हुए चरण स्थापित करें। - श्रीयंत्र, कनकधारा यंत्र, कुबेर यंत्र को सिद्ध कराकर पूजा स्थान पर या तिजोरी में रखा जाता है।
- दक्षिणावर्ती शंख के पूजन व स्थापना से भी धनागमन और सुख प्राप्ति का लोकविश्वास है। - लक्ष्मी के साथ 11 कौडिय़ों की पूजा कर उन्हें पूजास्थल, तिजोरी एवं व्यवसाय स्थल पर रखना शुभ-समृद्धि दायक माना जाता है।
इस दिन आंकड़े के गणेश की पूजा व स्थापना से सम्पन्नता का आशीष मिलता है। - लक्ष्मी पूजन में एकाक्षी नारियल या समुद्री नारियल की पूजा करने एवं तिजोरी में इसे रखने से घाटा नहीं होगा एवं समृद्धि आएगी।
एकादशी की रात्रि में रामरक्षा स्तोत्र का पाठ व अनुष्ठान करने से सफलता एवं ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है। इसके साथ ही हनुमान चालीसा का पाठ भी किया जा सकता है। - रात्रि में लक्ष्मी पूजन करें और उस समय कमल के पुष्प अर्पित करें और कमल गट्टे की माला से लक्ष्मी मंत्र ऊँ महालक्ष्मयै नम: का जप करें। इससे देवी लक्ष्मी की प्रसन्नता प्राप्त होती है।


यह पोस्ट दैनिक भास्कर .कॉम से कॉपी की गयी हैं




Monday, October 28, 2013

चश्मेबद्दूर

 अहोई अष्टमी का व्रत था बच्चो की माँ इस व्रत को करती हैं यह व्रत परंपरा से हमारे परिवार में नही किया जाता थापरन्तु बच्चोके हित की कामना से बस मैंने भी बच्चो के जन्म से कुछ दिन पहले ही इस व्रत को करने की मन्नत मान  ली थी मन ही मन में और फिर बड़े बेटे के जन्म के बाद से यह व्रत करती आ रही थी इस बार भी सुबह जल्दी सोकर उठी और जल्दी जल्दी सब काम निबटाने लगी  बड़ा बेटा पढाई की वज़ह से घर से बाहर दिल्ली  में हैं  उसको फ़ोन किया  ..छोटा बेटा देर रात तक पढता रहा था सो उसको सोने ही दिया उठाया ही नही १२ बज  गये थे माँ ने व्रत किया हो बेटे के लिय और वोह भूखा सोया रहे सोचकर मन में बुरा लग रहा था सो बेटे को आवाज़ लगायी कि उठ जाओ और बताओ क्या नाश्ता बने तुम्हारे लिय  क्योकि उसके खाने के नखरे बहुत ज्यादा हैं  उसने आँखे खोलते ही घड़ी की तरफ देखा और बोला" मम्मा!!  उठाया क्यों नही ........मुझे  तो ट्यूशन जाना था .अब पक्का लेट हो जाऊँगा "
और तेजी से बाथरूम मैं घुस गया .. मैंने भी जल्दी से एक गिलास ढूध गर्म कर  और टोस्ट सेंक कर रख दिए कि लो जल्दी से खा लो एक घंटे बाद वापिस आओगे तब तक मैं खाना बना लूंगी ....  उफ़ माँ लेट हो रहा हूँ और आपको ढूध की पडी हैं  .
                                                                         मैंने जल्दी से एक मुठी बादाम उसको ज़बरदस्ती दिए अच्छा यह चबा लेना ..... . ट्यूशन से आते आते उसको  ३ बज गये कि माँ आज टीचर ने देर तक पढ़ाया मैंने कहा कि आओ खाना बना हुआ हैं  खा लो  तुम्हारा मनपसंद मटर पनीर बनाया हैं
                                            तब एक दम से बेटा बोला" नही माँ चार बजे आप कथा करोगी न तब खाऊँगा अभी जरा प्रोजेक्ट बनाने दो डिस्टर्ब ना करो "मुझे बहुत गुस्सा आया पर व्रत बेटे के लिय था तो उसको ही कैसे  कुछ कहती सो चुप रह गयी ..... और रसोई में  चली गयी ... तभी बेटा पीछे से वहां आया और हग करके बोला पापा के लिय व्रत रखा था तो कितना अच्छा तैयार हुयी थी चूड़ियां माला साड़ी पहन कर आज मेरे लिय भी तैयार होवो ना  .....मैंने कहा आज घर पर रहना हैं मंदिर जाकर पूजा नही करनी तो ऐसे ही ठीक हूँ साफ सूट तो पहना हैं बोला नही अच्छा सा सूट पहनो और अच्छे से तैयार हो जाओ ....  मैंने भी बेटे का मन रखने के लिय अच्छा सा सूट पहना औरअछे से तैयार होकर  चार बजे कथा शुरू की ........ और कथा के बाद बेटे को कहा कि अब तो कुछ खा लो सुबह से व्रत रख कर बैठे हो  ..बोला माँ अभी नही भूख लग रही सच में ........और हाँ एक बात तो बताओ जब पति अपनी पत्नी के लिय करवाचौथ का व्रत रख सकता तो क्या एक बेटा अपनी माँ की लम्बी उम्र के लिय व्रत नही रख सकता  मैं भी आज आपके साथ ही खाना खाऊँगा ...... मन एकदम से मौन हो गया अपने छोटे बेटे की बाते सुनकर ........ पापा के बाहर रहने से कितना परिपक्व सोचने लगा हैं मेराराजा बेटा  फिर भी मैंने जिद करके उसको एक गिलास ढूध पिलाया कि ढूध पी  सकते हैं ......तभी पति का फ़ोन आगया कि वोह आज रात घर आरहे हैं ८ बजे के बाद पहुँच जायेंगे पर हम व्रत का खाना खा ले क्युकी हम तारा देखकर खाना खाते हैं  ... बेटे ने कहा नही पापा आपके साथ ही खायेंगे आप आ तो जाओ जल्दी से .......
 मैं भी आकर नेट पार ब्लॉग देखने लगी क्युकी बेटे की जिद के सामने मेरी एक न चली .... ६ बजे के बाद मैंने कहा बेटा अब तारे निकल आये हैं मैं अर्क देती हूँ और उसके बाद मंदिर जाकर पंडितानी जी को बायना  देकर आती हूँ फिर एक साथ खाना खायेंगे ...... बेटा बोला माँ अभी आप सिर्फ खाना खा लो मैं  पापा के साथ खाना खाऊँगा .मैंने कहा ठीक हैं फिर मैं भी तभी खाना खाऊँगी .... और मंदिर चली गयी वहां से वापिस लौट रही थी कि रस्ते में  ना जाने क्या हुआ कि  मैं चक्कर खा कर गिर गयी और घुटने  और कोहनी मैं बहुत जोर  से चोट लगी खून बहने लगा     पड़ोसियों ने सहारा देकर घर तक पहुँचाया मुझे तो लगा कि आज घुटने की हड्डी गयी मेरी .......... बेटे ने कहा माँ जल्दी से   सिटी हॉस्पिटल चलते हैं .और  मेरे सेल से उसने डॉ गुप्ता को फ़ोन कर दिया और मुझे लेकर वहां पहुंचा   वहां सारे चेक- अप के बाद डॉ ने कहा कि कोई खास बात नही पट्टी बाँध  देते हैं घाव पर और गुम  चोटों के लिय  बर्फ की सिकाई कर देते हैं ...बेटा मेरा हाथ थामे वही खड़ा रहा ....... दर्द बहुत तेज था मेरे आंसू बहने लगे ...... बेटा बोला देखा ....  कहा था न व्रत न रखा करो   अब मैं हूँ ना आपके पास .  डॉ से वापिसी पर उसने मुझे  एक अच्छा सा कोफी मग लेकर दिया मैंने पुछा यह क्यों ????बोला जब हमें बचपन में इंजेक्शन लगता था तो आप भी कुछ न कुछ लेकर देती थी न  ...... मन भावुक ही हुआ जा रहा था ..... खैर घर पहुंचे तो मैंने कहा चलो खाना खा लेते हैं फिर  बोला आप बैठो और उसने मुझे व्रत का खाना  जो मैंने शाम को बनाकर रख दिया था सर्वे किया ....और मेरी थाली से सिर्फ एक ग्रास खाया ...... .  रात  को ९ बजे जब उसके पापा आये तब दोनों ने खाना खाया ....औरबाते करते करते  पापा से कहने लगा कि पापा आप ही बताओ कि यह व्रत सिर्फ मम्मी ही क्यों करे .हम सब क्यों न करे  ..... उसके पापा ने कहा कि बेटा आज तूने किया न माँ के लिय व्रत तो आज तेरी माँ के उप्पर आये कष्ट इतने में टलगये   ईश्वर तेरे जैसा प्यारा बच्चा सबको दे ........... क्या कहूँ अब मैं ???........ कैसे गुस्सा करू उस बेटे को कि तेरा ध्यान पढाई में क्यों नही लगता ..... जबकि जिन्दगी के सबक तो तुम कितने अच्छे से पढ़ रहे हो और उम्दा नंबर से पास भी हो रहे हो
 इन किताबी  नम्बरों   का क्या करूँ ...................  बस इश्वर से यही प्रार्थना हैं कि  यह संस्कार और  विवेक हमेशा रहे   और दुनिया की गरम हवा तुमको छु भी न पाए ....चश्मेबद्दूर ........

Wednesday, October 9, 2013

दिल के अरमान आंसू में बह गये

खट से जो दरवाज़ा खोला सामने तुम थे , मुह ढक कर सोये से ,दिल से जोर से धड़क उठा , हाथ  कंपाने लगे  आँखे भर आई , कितने दिन बाद तुमको देखा ना  सबकी जिद थी तुमसे दूर रहू   कोशिश भी बहुत की  पर तुम बहुत शिद्दत से याद आये , चुपके चुपके तुमको याद करती थी  पर डरती थी किसी को भी कहते कि  मुझे तुम्हारी याद आ रही हैं  तुमने भी शिद्दत से याद नही किया मुझे  वरना शाहरुख़ कहता हैं न  ज़र्रे  ज़र्रे  ने मिलाने की साजिश की हैं मुझे तो तुमसे दूर करने की साज़िशे  रची इस कमबख्त दुनिया ने , बहुत चाह तुम्हे मैंने . दिल किया जल्दी से तुम्हे छु लू भर लू बाहों में  चूम लू तुम्हारा माथा ,भूल जाऊ सुध - बुध , खोजाऊ असीम आनंद में तुम्हारे संग  वक़्त का पता ही न चले कब हम एक दुसरे के करीब आये ,हर भाव मन के मैंने तुमसे शेयर किये  प्यार वाले भी और उनसे हुए झगडे  वाले भी , सच्ची कसम से  तुम मुझसे अलग नही . बेवफा !! तुमको मेरी क्या परवाह तुम्हे कोई भी अपना ले उसके हो जाते हो पर तुम्हे मेरे अलावा कोई और छु दे तो  मेरा दिल
घबराता हैं , कितना अजीम है न तेरा मेरा रिश्ता ,तुम्हारे दुसरे रूपों ने मुझे लुभाने की कोशिश की पर सिर्फ तुम्हारी दीवानी हूँ , तुम्हे और भी मिल जायेंगे साथ !! पर ..मेरा क्या होगा ? कभी सोचा .. मेरे अकेलेपन के तुम्ही सहारे हो साथी हो ..जाओ मत बनाओ न मुझे अपना आदि ,इतना एडिक्शन अच्छा नही न तेरा ,
  अच्छा प्रॉमिस पहले की तरह नही आऊंगी तुम्हारे करीब , पक्का  पर अहसान मंद हूँ तुम्हारी  तुमने मुझे मेरी इनर सोल से जो मिलवाया  सुन!! अब नही रहा जा रहा मुझसे  इतने दिन बाद मिली हूँ  तो ... कुछ न कुछ तो लिखना बनता है न मेरा तुझको ,तुझपर,
अब आते जाते नजर जो पढ़ रही हैं तुम पर  .इतने दिन की छुटिया बिता कर आई हूँ   .. आओ न तुम भी बताओ न मेरे पीछे  क्या क्या हुआ ?

 अरे बेटा  !!! जरा इस कंप्यूटर को मेरे कमरे  में रख दो और  वाई-फाई  बंद कर दो
 वरना यह नीलिमा फिर से फेसबुक खोल कर निविया बन जायेगी और खो जायेगी उसी दुनिया में !!! ...:D




दिल के अरमान आंसू में बह गये  .हम कंप्यूटर के प्रेम में तनहा रह गये उफ्फ्फ मेरा कंप्यूटर !!! और मेरा उसके साथ प्रेम सबको इतना चुभता क्यों हैं ?

Sunday, October 6, 2013

पालतू जानवर गाय आज/ कल

 आज फिर से  दुधिया नही आया। .बहुत मुश्किल लगता हैं  डोलू लेकर   ढूध की डेरी पर जाकर लाइन में खड़े हो   जाना और इंतज़ार करना अपनी बारी का   तो उसको कह दिया भैया  जी घर पर ही ढूध दे जाया करो   और अब सुकून से घर पर ढूध  का इंतज़ार करते
……                                                                                           आज कल ढूध कुछ पीलापन लिए हैं  तो बच्चे  पीने में आनाकानी करने लगे   उनको लगता हैं  या आपने हल्दी मिलाकर पीने को दिया  या फिर ढूध वाले अंकल  जरुर कुछ मिलावट करते होंगे ,  अब यह मेरे शहरी बच्चे क्या जाने , जब गाय  का ढूध आएगा तो पीला ही होगा न। ……ग़ाय के नाम पर मायका याद आ जाता हैं  और बचपन भी। ……… किसान परिवार तो  घर में गाय का होना लाजिमी था बड़ा परिवार आखिर कहा से बाहर के ढूध से पूरा पढता फिर सबको ढूध  के इलावा  दही लस्सी और घर का माखन भी चाहिए होता था  और घर आने जाने वालो को लस्सी और ढूढ़ पिलाया जाता न की यह जहर जैसा कोला लिम्का ।  सो पापा ने हमेशा घर में गाय पाली ……।मुझे आज भी याद हैं जब पापा काली गाय लेकर आये थे मेरठ से  और हम सब भाई बहन इंतज़ार कर रहे थे  किअभी तक तो सफ़ेद गाय हैं घर में  यह विलायती  काली गाय कैसे होगी। …। और जब देखा तो ना जाने क्यों और  कब एक मोह सा जाग उठा  उस गाय को लेकर। माँ मुह अँधेरे उठ जाती और उनका पहला काम ही यही थाकि  सुबह उठकर घेर( वोह घर जहाँ पर पालतू
मवेशी रखे जाते हैं ) में जाना और वहां पर गाय की सानी करना और पानी पिलाना। । फिर  उनको नहला कर उनके नीचे से गोबर  हटाकर स्थान (छप्पर)को साफ़ करना। हम कब माँ के साथ यह सब काम करने लगे याद भी नही  अब कई बार माँ के घर से बाहर  जाने पर खुद ही भूसा दाल  कर उस में बिनौले  और सरसों की खली मिलाकर   सानी कर देते थे फ़िर धीरे धीरे माँ से ढूध धुहना भी सीख लिया    घर में दो गाय थी  तो उनका गोबर भी उठाकर कई बार तसले में भरकर छत पर  ले जाते और फिर माँ उसके उपले बनाती  तो हम भी बहादुर  के साथ माँ की हेल्प करते  और कभी कभी हम भी छोटे छोटे छेद  करते थे उन उपलों में किसी न किसी सलाई या लकड़ी से। धीरे धीरे माँ ने उपले बनाने भी सिखाये। … तब कभी मना भी करते तो माँ कहती कि  लडकियों को सब काम करना आना चाहिए   क्या पता कैसे घर में शादी हो जाए, और जानवर को जानवर नही घर कासदस्य  मान कर उसके सब काम करोगे  तो कभी कोई काम गन्दा नही लगेगा और छोटा भी नही लगेगा । ……… और ना जाने क्यों किसी अन्य जानवर को पालतू रूप में स्वीकार करने का मन नही किया आज तलक। …।  गाय को देखते ही आज भी न सिर्फ आदर भाव आता हैं अपितु माँ की सी भावनाए आती हैं अपनी माँ का उनसे जुड़ाव याद करके।  अब शहर में रहने लगे हैं तो ढूध में स्वाद ही कहाँ माखन जितना मर्ज़ी अमूल का खा ले जो तृप्ति सफ़ेद वाले ताज़े ताज़े में वोह अब  कहा। ……।
                                                                                   मन तो करता हैं अभी भी मेरे घर में गाय हो जैसे माँ के घर आज भी हैं तीन गाय। परन्तु स्थान की कमीबच्चो का नाक-भो सिकोड़ना   और सबसे बड़ी बात  अब सब करेगा कौन। ……अब तो आदत पढ़ गयी न। । अब क्या  मैं गोबर उठा पाऊँ गी ?क्या मैं सुबह उठकर बेड टी  का मोह त्याग कर पहले गायमाता की सेवा कर सकुंगी ………. अब सो कॉल्ड  मोडर्न वाइफ बन गयी हूँ न। … अब पड़ोस की डेरी से जब तब गोबर की दुर्गन्ध आ रही हैं कहकर बच्चे परेशान हो जाते हैं  तो क्या मैंने जब गाय का काम करूंगी तो  उनको मेरे पास से एक अजीब सी स्मेल  आएगी … गाय के प्रति प्रेम   और उसको पालने की अभिलाषा  मन के अन्दर किसी कोने मैं हैं  जो अब बस कभी कभार एक रोटी या गुड देने के साथ सीमित हो गयी हैं । समय के साथ साथ खुद को बदलना पढता हैं  कल कहना ही पड़ेगा ढूधिये को कि  भैया भैंस का ही ढूध  दे जाया करो कम से कम बच्चे पियेंगे तो सही .........................
                                                                                        अब पालतू गाय का ज़माना चला गया  अब उनका स्थान सिर्फ तबेलो में ही रह गयी हैं 

Sunday, September 8, 2013

हम मुज़फ्फरनगर वाले हैं

पिछले कुछ दिनों से मन बहुत विचलित हैं . बार बार माँ के घर फ़ोन करके पूछती हूँ कि सब ठीक से हो न , कोई भी सरवट या पचेंडा की तरफ मत जाना , बच्चोको घर के अंदर रखना , बार बार अपना मुज़फ्फर पेज ओपन करती हूँ बार बार वहां पर लोगो के कमेंट पढ़ती हूँ .. बस सब ठीक हो यह प्रार्थना भी करती हूँ .
वैसे कोई पहलीबार मुज़फ्फरनगर इस तरह दंगो की चपेट मैं नहीआया हैं , यहाँ पर लोग बहुत ही असहिष्णु हैं , जरा जरा सी बात पर मार - काट की किस्से यहाँ के लोकल अखबारों मैं अक्सर पढने को मिलते हैं . पैस से बहुत ही अमीर परन्तु जल्दी ही गुस्से में आजाने वाले यहाँ के मूल निवासी जब दोस्ती करते हैं तो भी ज़मकर और जब खुंदक में आ जाते हैं तो भी न आव देखते हैं न ताव, तब कितना नुकसान हुआ उसको देखकर बाद मैं पश्चाताप भी बहुत करते हैं . आपसी सौहर्दय से भी रहते हैं यहाँ बहुत सारे लोग . ईद पर और दीवाली पर अक्सर यह सौहर्दय देखने को मिलता नगर क्षेत्र मैं ... जिस बात को लेकर यह दंगा हुआ छोटी बात तो नही थी अपनी बहन को छेड़ने पर भाई का सामने आना लाजमी था .हाँ उसके बाद जो कतल-इ- आम हुआ वोह गलत हुआ ..और उस आग में हिन्दू और मुसलमान दोनों सम्प्रदायों के नेताओ ने जो रोटिया सेंकी हैं उस'से उन्हें फायदा होगा या नही समय बताएगा परन्तु आज न जाने कितने घर उजाड़ गये . पंचायत मैं गये लोगो पर जब घात लगाकर हमला बोला गया तो ना जाने कितने बूढ़े जवान गायब हो गये नदी में कूद कर जान बचानी पढ़ी कुछ लोगो को ... नेट पर खबरे पढ़कर जब माँ को सुनाई तो माँ बोली ऐरे ऐसा तो जब पकिस्तान बना था तब हुआ था इस तरह घात लगाकर हमला . अफवाहों का बाजार इस वक़्त बहुत गरम हैं पता नही कितना सच हैं कितना झूठ , एक बाजार में मुस्लिम की दुकाने जला दी गयी उनके बच्चे भी उसी दुकान की कमाई से जिन्द्दगी के सपने बन रहे थे , बात परवरिश की हुयी बात माहौल की हुई जरा सा संयम देखाने से आज घरो में सिसिकिया और आशंकाए न गूंज रही होती .आज हर मं
दिर मस्जिद में अपनी अपनी कौम की मीटिंग्स हो रही हैं सेना गश्त लगा रही हैं ..........कभी कभी तो मैं सोचती हूँ यह सेना बनी किस लिय थी बाहरी दुश्मनों से रक्षा के लिय या यह घर के लोगो को आपस में लड़ने पर बिच बचाव करने के लिय .जरा सा कुछ होता नही कि सेना को बुला लो ऐरे जब सेना ही सब काम करेगी तो यह पुलिस या नेताओ और प्रशासनिक अधिकारियों की जरुरत ही क्या हैं नए कप्तान जो यहाँ के लोग का मिजाज नही जानते क्या सम्हाल पाएंगे ?

मेरी प्रार्थना हैं उन सब पिताओं से जिनके बच्चे भी उनके साथ आज असलहे लेकर घूम रहे हैं देखना आज नही तो कल इस असलहे तुम्हारे ही किसी अपने का खून भी बह सकता हैं .....जो पराये को मारने में जरा नही पसीजता वोह एक दिन अपने पर भी दया नही खायेगा वक़्त संयम का हैं अपने धर्म और कौम की इज्ज़त करे परन्तु हाँ और न के बीच एक पारदर्शी दीवार होती हैं इसलिय एक बार सोचे

दिल दुःख रहा हैं देखकर , बताकर . के हम मुज़फ्फरनगर वाले हैं ...... कल ऐसा न हो कि हम कहे किसी को कि हम मुज़फ्फरनगर वाले हैं तो लोग कहे ऐरे वही न "जहा न हिन्दू किसी का न मुसलमान किसी का
अरे बचा नही वहाँ तो अब ईमान किसी का "

Neelima sharrma
सब कुछ जल्दी सामान्य हो की प्रार्थना के साथ
 —

श्रीगणेश नाम स्मरण


गणेश चतुर्थी की सभी मित्रो को हार्दिक शुभकामनाये 
 सर्वप्रथम पूजनीय गणेश महाराज जी स्मरण नित्य किया जाना चाहिए  उसके पश्चात  उनके लिय विभिन्न मंत्रो का जाप करना चाहिए 

 चमत्कारी  श्रीगणेश नाम स्मरण 
प्रणम्यं शिरसां देवं गौरीपुत्र विनायकम्।

भक्तावासं स्मरेन्नित्मायु: कामार्थसिद्धये।।

प्रथमं वक्रतुण्डं च एकदतं द्वितीयकंम्।

तृतीयं कृष्णपिङ्गाक्षं गजवक्त्रं चतुर्थकम्।।

लम्बोदरं पञ्चमं च षष्ठं विकटमेव च।

सप्तमं विघ्नराजं च धूम्रवर्णं तथाष्टमम्।।

नवमं भालचद्रं च दशमं तु विनायकम।

एकादशं गणपतिं द्वादशं तु गजाननमं।।

द्वादशैतानि नामानि त्रिसंध्यं यं पठेन्नर:।

न च विघ्रभयं तस्य सर्वसिद्धिकरं प्रभो।।

विद्यार्थी लभते विद्यां धनार्थी लभते धनं।

पुत्रार्थी लभते पुत्रान् मोक्षार्थी लभते गतिम।।

जपेद्गणपतिस्तोत्रम षड्भिर्मासै: फलं लभेत।

संवत्सरेण सिद्धिं च लभते नात्र संशय:।।

अष्टभ्यो ब्राह्मणेभ्यश्य लिखित्वा य: समर्पयेत। तस्य विद्याभवेत्सर्वा गणेशस्य प्रसादत:।।
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(गणेश भगवन के १०८ नाम )
1, ॐ श्री विघ्नेशाय नम: 
2, ॐ श्री विश्व्वरदाय नम: 
3, ॐ श्री विश्वचक्षुषे नम: 
4, ॐ श्री जगत्प्रभवे नम: 
5, ॐ श्री हिरण्यरुपाय नम: 
6, ॐ श्री सर्वात्मने नम: 
7, ॐ श्री ज्ञानरूपाय नम: 
8, ॐ श्री जगन्मयाय नम: 
9, ॐ श्री ऊर्ध्वरेतसे नम: 
10, ॐ श्री महाबाहवे नम: 
11, ॐ श्री अमेयाय नम: 
12, ॐ श्री अमितविक्रमाय नम: 
13, ॐ श्री वेदवेद्याय नम 
14, ॐ श्री महाकालाय नम: 
15, ॐ श्री विद्यानिद्यये नम: 
16, ॐ श्री अनामयाय नम: 
17, ॐ श्री सर्वज्ञाय नम: 
18, ॐ श्री सर्वगाय नम: 
19, ॐ श्री गजास्याय नम: 
20, ॐ श्री चित्तेश्वराय नम: 
21, ॐ श्री विगतज्वराय नम: 
22, ॐ श्री विश्वमूर्तये नम: 
23, ॐ श्री अमेयात्मने नम: 
24, ॐ श्री विश्वाधाराय नम: 
25, ॐ श्री सनातनाय नम: 
26, ॐ श्री सामगाय नम: 
27, ॐ श्री प्रियाय नम: 
28, ॐ श्री मंत्रिणे नम: 
29, ॐ श्री सत्वाधाराय नम: 
30, ॐ श्री सुराधीशाय नम: 
31, ॐ श्री समस्तसाक्षिणे नम: 
32, ॐ श्री निर्द्वेद्वाय नम: 
33, ॐ श्री निर्लोकाय नम: 
34, ॐ श्री अमोघविक्रमाय नम: 
35, ॐ श्री निर्मलाय नम: 
36, ॐ श्री पुण्याय नम: 
37, ॐ श्री कामदाय नम: 
38, ॐ श्री कांतिदाय नम: 
39, ॐ श्री कामरूपिणे नम: 
40, ॐ श्री कामपोषिणे नम: 
41, ॐ श्री कमलाक्षाय नम: 
42, ॐ श्री गजाननाय नम: 
43, ॐ श्री सुमुखाय नम: 
44, ॐ श्री शर्मदाय नम: 
45, ॐ श्री मुषकाधिपवाहनाय नम: 
46, ॐ श्री शुद्धाय नम: 
47, ॐ श्री दीर्घतुंडाय नम: 
48, ॐ श्री श्रीपतये नम: 
49, ॐ श्री अनंताय नम: 
50, ॐ श्री मोहवर्जिताय नम: 
51, ॐ श्री वक्रतुंडाय नम: 
52, ॐ श्री शूर्पकर्णाय नम: 
53, ॐ श्री परमाय नम: 
54, ॐ श्री योगीशाय नम: 
55, ॐ श्री योगधाम्रे नम: 
56, ॐ श्री उमासुताय नम: 
57, ॐ श्री आपद्धंत्रे नम: 
58, ॐ श्री एकदंताय नम: 
59, ॐ श्री महाग्रीवाय नम: 
60, ॐ श्री शरण्याय नम: 
61, ॐ श्री सिद्धसेनाय नम: 
62, ॐ श्री सिद्धवेदाय नम: 
63, ॐ श्री करुणाय नम: 
64, ॐ श्री सिद्धाय नम: 
65, ॐ श्री भगवते नम: 
66, ॐ श्री अव्यग्राय नम: 
67, ॐ श्री विकटाय नम: 
68, ॐ श्री कपिलाय नम: 
69, ॐ श्री ढुंढिराजाय नम: 
70, ॐ श्री उग्राय नम: 
71, ॐ श्री भीमोदराय नम: 
72, ॐ श्री शुभाय नम: 
73, ॐ श्री गणाध्यक्षाय नम: 
74, ॐ श्री गणेशाय नम: 
75, ॐ श्री गणाराध्याय नम: 
76, ॐ श्री गणनायकाय नम: 
77, ॐ श्री ज्योति:स्वरूपाय नम: 
78, ॐ श्री भूतात्मने नम: 
79, ॐ श्री धूम्रकेतवे नम: 
80, ॐ श्री अनुकूलाय नम: 
81, ॐ श्री कुमारगुरवे नम: 
82, ॐ श्री आनंदाय नम: 
83, ॐ श्री हेरंबाय नम: 
84, ॐ श्री वेदस्तुताय नम: 
85, ॐ श्री नागयज्ञोपवीतिने नम: 
86, ॐ श्री दुर्धषाय नम: 
87, ॐ श्री बालदुर्वांकुरप्रियाय नम: 
88, ॐ श्री भालचंद्राय नम: 
89, ॐ श्री विश्वधात्रे नम: 
90, ॐ श्री शिवपुत्राय नम: 
91, ॐ श्री विनायकाय नम: 
92, ॐ श्री लीलासेविताय नम: 
93, ॐ श्री पूर्णाय नम: 
94, ॐ श्री परमसुंदराय नम: 
95, ॐ श्री विघ्नांधकाराय नम: 
96, ॐ श्री सिंधुरवरदाय नम: 
97, ॐ श्री नित्याय नम: 
98, ॐ श्री विभवे नम: 
99, ॐ श्री प्रथमपूजिताय नम: 
100, ॐ श्री दिव्यपादाब्जाय नम: 
101, ॐ श्री भक्तमंदाराय नम: 
102, ॐ श्री शूरमहाय नम: 
103, ॐ श्री रत्नसिंहासनाय नम: 
104, ॐ श्री मणिकुंड़लमंड़िताय नम: 
105, ॐ श्री भक्तकल्याणाय नम: 
106, ॐ श्री कल्याणगुरवे नम: 
107, ॐ श्री सहस्त्रशीर्ष्णे नम: 
108, ॐ श्री महागणपतये नम:






Monday, August 26, 2013

माँ फिर कब आओगी

आज सुबह माँ की बहुत याद आरही थी मन कर रहा था कि बस एक बार नजर भर देख लू उनको सब कह रहे हैं कि माँ बहुत कमजोर हो गयीं हैं पीठ भी झुकने सी लगी हैं ...पर कभी अपनी तबियत और कभी घर की मसरूफियते जाने ही नही देती थी .आज ११ बजे पापा का फ़ोन आया की तुम्हारी माँ का मन बहुत उदास हैं तुमसे मिलने को ...तुम क्या बना रही हो? बिना प्याज का खाना बनाना तुम्हारी माँ और मैं तुम्हे मिलने आ रहे हैं बस २५-३० मिनट्स का लगेगे हमें पहुँचने में ...... सुस्ताई सी चाल में फुर्ती भर गयीं घर में शोर मच गया माँ आरही थी अरसे बाद मेरे घर बेटे ने जल्दी से डस्टिंग की बेडशीट्स बदल दी और मैंने रसोई में मोर्चा सम्हाला जहाँ आज दोपहर का मेनूखिचड़ी था वहाँ पनीर और दाल और करेले बन गये .पापा की पसंद के बिस्कुट मंगवाए .और माँ के आने पर जब हाथ पकड़ कर उनको इन्नोवा से उतारा आँसू ही नही थम रहे थे मन ने बस चाह की समय रूक जाए यही मैं फिर से बच्ची बन जाऊ पर बच्चे मुझे यु देखकर हैरान थे .५ साल से होस्टल में रहने वाला बेटा बोला माँ आप बड़ी मम्मी को देख आज २४ साल बाद ही इतनी भावुक हो रही हो जब शादी होकर आई थी तब क्या हाल रहा होगा ...अब कोई कैसे बताये माँ - बेटी के रिश्ते मैं उम्र या सालो बाद मिलना मायने नही रखता ... ढेर साडी बाते की माँ के साथ पापा के साथ .. मेरी लिखी कविताये पढ़ी उन्होंने पर माँ बोली मेरे घर आने वाली अखबार में छपनी चाहिए तेरी लिखी कोई कहानी या कविता ...तो अब जीजू anil royal ji माँ की यह इच्छा पूरी करनी हैं .चलते चलते पापा Malik rajkumar ji का लिखा उपन्यास बाईपास ले गये और खुश भी हुए यह तो अपने पासे का बंदा हैं ..... माँ का लाया सूट और मुठ्ही में पकडाया हुआ  ५०० का नोट मेरी जिन्दगी की सबसे कीमती धरोहर हैं  स्नेह से भीगा यह नोट  ..................

माँ ऐसे ही होती हैं न ............. हाँ मेरी माँ ऐसे ही हैं .पर जाते जाते न जाने ऐसा क्यों कह गयीं के मेरी जिन्दगी थोड़ी हैं अब ..एक बार आ जा कुछ दिन को साथ रहने .......और दिल किया माँ का हाथ पकड़ कर मैं भी बैठ जाऊ इन्नोवा में .पर धियान जम्देयाँ हों परायियाँ ..... ........फिर माँ ने मेरे आँसू देख खुद ही कहा अच्छा अब उदास मत हो जल्दी आऊंगी मैं वापिस ...............

मैंने हाथ थाम कर कहा.....कही नही जाना तुमने समझी ना जब तक मेरे दोनों बेटो के बच्चो की बड़ी वाली मम्मी नही बन जाती ....माँ भोली सी हंसी हंस दी ......... और मैं .................. खोयी हूँ माँ की यादो में ........

Monday, August 12, 2013

क्यों बेच रही हो ? कबाड़ी को

"मम्मा!!! क्या है आपको
?क्यों बेच रही हो ? कबाड़ी को मेरे रबड़ , शार्पनर और यह बैटमैन वाले कार्ड्स पता हैं कितनी मुश्किल से मिले थे ...और यह मेरे कॉमिक्स हाय यह स्टोरी बुक्स भी रस्किन बांड का पूरा कलेक्शन इकठ्ठा करने में मैंने कितनी बार दोस्तों के साथ बाहर बंद टिक्की मिस की ,और यह मेरी सारी खिलौना कार रखो न इनसबको वापिस उसी दादी वाले लोहे के बॉक्स में ."
बेटे की सब चीजे वापिस सहेजते हुए सोचने लगी मैं .......कि क्या मैं अपनेसामान को फेंक पाई हूँ वोह टूटा हुआ फूलदान वोह चूड़ियाँ जिन्हें बरसो से नही पहना , शादी वाले सूट , सहेलियों के दिए तोहफे . अपने हाथ से कढ़ाई किये पर अब पुराने हो चुके मेजपोश
पर सामने से हँसते हुए कहा "अच्छा बाबा रख देती हूँ सारा सामान .जब तुम्हारे बच्चे होंगे न और तुम उनको कुछ ला कर देने से मना करोगे तो तब उनको दीखाऊंगी कि कितना शैतान था तुम्हारा पापा ..अब तो खुश ना ."..
"जा कबाड़ी को बोल कल आना .पापा की अलमारी कल खोलेंगे " — feeling amused.

Sunday, August 11, 2013

सोच की परिधि

कितना भी सोचु कि अभी नही सोचूंगी पर सोचे फिर भी बार बार तुम्हे ही सोचती हैं और
सोच की परिधि से बाहर जाकर तुम " मैं" बन जाते हो और मैं खुद को भूल जाती हूँ .ये मन भी कितना बावला होता है न जिसको सोचना नही चाहिए वही सोचता हैं और जिन बातो को हमेशा अपनेदिमाग में रखना चाहिए वोह याद नही रखता हम हमेशा दायरों में रहकर अपनी सोचो को संकुचित रखते हैं तो तो भी सोचे बगावत कर जाती हैं . यह सोचे ही कभी हमें आसमान की अनंत उडान तो कभी रसातल की तरफ ले जाती हैं .सोचना इंसानी फितरत हैं इसलिय मैं भी सोचती हूँ बहुत कुछ ......हाँ बहुत कुछ ...पर आजतक मन का पक्षी अपनी उडान नही भर पाया .आज तक सोचे धरातल पर नही उतरी .आज तक त्रिशंकु की मानिद अटकी हैं .... नही सोच पाती मैं" तुम" बनकर और तुम बन' ना कोई आसान थोड़े हैं तुम तुम हो इसिलिय मैं सिर्फ मैं ही रह गयी हूँ सोचो में तुमको सोचते हुए अपने मन के कोने से ...........नीलिमा

Thursday, August 8, 2013

ईद मुबारक आपको .तीज मुबारक मुझको

 जानते भी हो कल क्या हैं !!! ईद हैं ईद ! आपका  जन्मदिन  इसी दिन हुआ था न  बाबा आपको  इदू कहकर पुकारते थे    माना कि हम हिन्दू हैं  पर इस दिन सेवइयां तो जरुर बनती हैं हमारे यहाँ .आ जाओ न  जल्दी से 
 और हाँ कल तीज भी हैं  , यह भी हमारे यहाँ नही मनाई जाती हैं पर मुझे हर साल  चूड़ियाँ तो दिलाते हो न आप और मेरे हाथो में मेहंदी भी  रचती हैं  ... ले आई हूँ मैं बाजार से चूड़ियाँ।।हाँ!  धानी रंग की ही  और मेहंदी का कोन भी .और सामने रखे सोच रही हूँ  तुम तो नही आओगे तो क्या फायदा मेहंदी का चूडियों का ..... रख देती हूँ अलमारी मैं .......जब तुम आऊगे न उसी दिन  सेवइयां भी बना लूंगी  और चूडियाँ भी पहन लूंगी मेहंदी लगाकर .......... अब नौकरी करनी हैं आपको तो क्या  मेरे नखरे , मेरे त्यौहार ( सरकार के खाते में भावनाओ की कदर नही )  जाओ कराओ अपने ऑफिस का निरीक्षण अपने  अधिकारियो  से :((
ईद मुबारक आपको .तीज मुबारक मुझको 

Tuesday, July 9, 2013

बूढ़ा मरता क्यों नी !!!

रिश्ते  कितने मुश्किल होते हैं आजकल . एक जमाना था सबसे आसान  रिश्ता था  माँ- बाप का बच्चो से  और बच्चो का माँ- बाप से  ,उसके बाद  भाई और बहन का   उस बाद के  सारे रिश्ते दुरुहता लिय हुए होते थे  परन्तु आज यह रिश्ता  जो सबसे प्यारा था आज भोतिकता वाद की भेँट  चदता जा रहा हैं . आज बच्चो के लिय उस उम्र तक ही माता  पिता सहनीय होते हैं  जब तक उनका अपना परिवार न बन जाए  , माता पिता  का बनाया ८ कमरों का मकान  और एक वक़्त ऐसा भी उनके लिय एक कमरा   भी मयस्सर नही होता  , माना  समाज में परिवर्तन होते हैं  परन्तु रिश्तो में  जो  खोखलापन या  रुपयावाद  हावी हो गया हैं  उसने आज समाज में   बुजुर्गो की स्तिथि बहुत दयनीय बना दी हैं  , माना कि  कुछ बुजुर्ग  इस उम्र में असहिष्णु   हो जाते हैं परन्तु उनके बच्चे भूल जाते हैं कि  आज उन में  जो जज्बा हैं यह इन्ही की बदोलत हैं  पश्चिम उत्तर प्रदेश की अखबारे अगर आप कभी पढ़े तो उसमे  सबसे ज्यादा खबरे व्यभिचार और दुसरे नम्बर पर बुजुर्गो पर अ त्याचार की होती हैं  . एक बीघा जमीन के लिय पिता को फावड़े से मार  देना ,  जमीन के कागजो पर  माता पिता  को म्रृत घोषित कर देना आम सी बात हो गयी हैं .इंसान जितनी मर्ज़ी लम्बी कार लेकर घूम रहा हैं उतनी ही छोटी अपनी सोच कर रहा हैं  आज के लोग   गर्व करते हैं कि  हमने अपने एक्लोते बच्चे को विदेश भेज कर पदाई करा दी  हमने फलां जगह भंडारा करा दिया  परन्तु घर में उनके बुजुर्गो ने अगर कभी अपनी पसंद की सब्जी केलिए  कह दिया तो घर भर में क्लेश हो जाना लाजिमी हैं  . कहने को पश्चिमी उत्तर प्रदेश    व्यापार  की दृष्टि से उन्नति कर रहा हैं सबसे ज्यादा आयकर इसी एरिया से जमा होता हैं सरकार को  परन्तु सबसे ज्यादा सामाजिक मूल्यों का हनन भी यही पर ही होता  हैं  सबसे  बड़ी बात यह हैं कि   घर भर में अपमान प्रताड़ना  और कही कही मार  पीट सहते हुए बुजुर्ग भी उस दायरे से बाहर नही आना चाहते   यह सोच कर कि  उनके पास अब जिन्दगी के बचे ही कितने दिन हैं , मैं तो कहती हूँ कि क्यों दिखाते हो ताजमहल विदेशियों को ....उनको कहो  कि  आकर के देखो यहाँ के बुजुर्गो को जिनके बच्चे भी उनको  जीने के लिय ओल्ड ऐज होम नही भेजना चाहते  परन्तु जीते जी जीने भी नही देना चाहते उनको दीखाना चाहिए कि  यह होती हैं सहन शीलता . काश यहाँ भी  विदेशो की तरह पुलिस होती जो एक काल भर से आ जाती 

 क्या कोई संस्था  हैं ऐसे जो इस पर पहल करे ...क्या कोई कानून हैं ऐसा जो ऐसे बुजुर्गो की अंतिम सांसे उनको सिसकते हुए न लेने दे  . सब सस्थाए भी  यही कहती हैं  कि  अगर लिखित में  शिकायत दर्ज हो  तभी कार्यवाही होगो .पर बुजुर्ग अगर लिखित में दे भी दे तो उनके बच्चे मनी के रसूख पर  मामला ही उल्टा देते हैं और पुलिस वाले ( काश यहाँ भी  विदेशो की तरह पुलिस होती जो एक काल भर से आ जाती )भी कह देते हैं ......." ओ ताऊ तेरे से  ताई संग घरे न बैठा  जाता एब आराम से  यो तेरे चुप चाप दो जून रोटी खाने के दिन .और तुझे  बच्चो की आजादी खल री  .जा आराम से बैठ घर जा के . वरना  कोई अर्थी को कन्धा भी न देगा लावारिस मर जाएगा " और वोह  बुजुर्ग  अपने अगले जन्म की खातिर उस बेटे के कंधे पर अर्थी मैं जाने की baat जोहता हैं जो उसकी जमीन जायदाद को उस सेमार पीट कर  छीन लेता हैं  और रोटी के एक एक टुकड़े को तरसा देता हैं   और माँ- बाप के मरने के बाद पूरी बिरादरी में कम्बल बाँट'ता  हैं  भोज का आयोजन करता हैं कि पिता जी को बड़ा किया था सुख से उम्र बीता के गये  हमारे बाबा जी / अम्मा जी ........... 

Tuesday, July 2, 2013

बच्चा हो बस एक , रिश्तो को न लगे सेंक .

क्या कहूँ ?अब तो थक गयी हूँ मैं . जिस घर से ब्याही जाती हैं लडकिया डोली उठ ते ही घर पराया हो जाता हैं और जिस घर पहुँचती हैं डोली वहां जाते ही कह दिया जाता हैं अपने घर से क्या लायी ? एक नारी की बिसात क्या हैं बस शतरंज का खेल हैं सब अपनी अपनी चाले चलते हैं कभी इधर वाले जीत जाते हैं कभी उधर वाले . पर दोनों ही नारी को उधर वाली समझते हैं अपने पाले की नही , सारा दिन मरती खपती हूँ तो घर का सारा इंतजाम सही से चलता हैं एक दिन की छुट्टी भी नही मिलती मायके वाले जब तब अपना रोना रोते रहते हैं कि तुम तो सही से रह रही हो अपने घर में यहाँ तुम्हारे बूढ़े माँ- बाबा को हम देखे न कही आने के ना जाने के , अब कोई पूछे जब बाबा का मकान जमीन कब्जाई तो पुछा था मुझसे .कि तुमने कैसे बच्चो की फीस का इंतजाम किया इधर सब कह देते हैं बड़े बाप की बेटी हैं ५ ० ० रूपये भी यु देते हैं जैसे अहसान कर रहे हो , लडकियों का भी हक हैं कि नही जमीन जायदाद में . अब किदर की सोचे . मैं न इधर कुछ कह सकू न उधर , एक बार भाई के सामने यूँ ही कह दिया था कि बाबा का ख्याल कर ......... यूँ गाली गलोज न किया करो बस उस पर पैसे का नशा ऐसे सर चढ़ कर बोलता हैं जैसे देसी दारू हो ......बस एक दम से कह दिया जा तेरे से सारे रिश्ते नाते ख़तम न तुम अब से हमारी न हम तेरे कुछ ....अब डर लगने लगा तब से कल मेरे बेटे की शादी होगी मामा नही आया तो सब कह देंगे लो बड़े बाप का बेटा हैं आया नही ............. सौ बात मुझे सुन ने को मिल जाएगी अब आदमी भी तब तक अपने होवे जब तक सब उनके मुताबिक हो \ जरा भी -इधेर उधर हो जाये तो जूते मरने को दौड़ते हैं कुछ तो अप्सरा जैसे बीबी के भी माँ- बाप भी ऐसे गाली सुना लेते हैं कि हम ओरत जात की आँखे पानी पानी हो जाए
यह बात सिर्फ हमारे तबके की नही पढ़े लिखे लोगो में भी भाई भाभी आजकल कितना पूछते हैं यह भाभियाँ भी अपने मायके की उतनी ही सताई होती हैं फिर भी जब बात रिश्तो की आती हैं एक अजीब सी खुमारी चड़ जाती हैं सब पर अपने कुछ होने की ....... अब थक गयी हूँ आज मायके से फिर भाई का संदेसा आया हैं या तो बाबा से सारी जमीन के कागज पर दस्तखत करा दे या फिर तेरा मेरा रिश्ता ख़तम .अब आप ही बताओ क्या करू ............? माँ- बाबा ने कोण सा मेरी सुध ली कभी ? बस ब्याह कर दिया और कह दिया अब तेरी किस्मत और तेरे सुख दुःख तेरे हाथ की लकीरे ....... मैं कहाँ हूँ / अछहा हुआ न मेरी एक ही ओलाद हैं अब जायदाद में किसी से झगडा नही करेगा अब तो सरकार को कहना चाहिए बच्चा हो बस एक , रिश्तो को न लगे सेंक .

आज सुबह काम वाली किरण के रोते हुए दिल की बयानी