आरुशी ह्त्या कांड ........माता पिता ने क्षणिक आवेश में आकर अपनी ही बेटी का कतल कर डाला और साथ ही उसका साथ देने वाले अपने नौकर का भी ....... उस एक पल में उनका गुस्सा इतना भयावह हो गया कि वोह भूल गये कि उनकी इकलोती बेटी हैं अगर उन्होंने अपनी बेटी को अपने नौकर के साथ आपतिजनक स्तिथि ( जैसा की कहा जा रहा हैं ) में देखा तो एक प्रश्न उठना तो जायज है ना कि आरुशी ने ऐसा क्यों किया . नौकर औरआरुषि हम उम्र नही थे / अगरपुरुष नौकर रखा हुआ था तो क्या नुपुर तलवार को समय से घर नही आना चाहिए था / क्या एक माँ को उम्र के इस मोड़ पर अक्सर घर पर अकेले रहने वाली बेटी से दोस्ताना सम्बन्ध नही बनाने चाहिए थे / क्या एक पिता जो अपनी बेटियों के लिय हमेशा रक्षात्मक मुद्रा में रहता हैं उसको पहले कभी आभास भी नही हुआ अपनी बेटी और नौकर के बीच के रिश्ते के बारे में / उनकी और कोई संतान नही थी तो उन्होंने समर्पण क्यों नही किया पुत्री की आवेग में की गयी ह्त्या के बाद / उस महिला की जिन्दगी कितनी ख़राब हुयी होगी जिसका रिश्ता राजेश तलवार से जोड़ कर उसे कटघरे में खड़ा कर दिया गया था / नुपुर और राजेश तलवार ने एक जघन्य कृत्य किया हैं परन्तु हेमराज का कसूर भी कम नही साथ ही आरुशी का भी ..हाँ उनको जो सजा दी गयी वोह नही मिलनी चाहिए थी अपनी बच्ची को समझा बुझाकर अपने में बदलाव लाकर दो परिवारों को बर्बादी से बचाया जा सकता था .... मेरी तो बिनती हैं उन काम काजी महिलाओ से जो अपनी आर्थिक स्वतंत्रता के नाम पर अपनी बेटियों को अकेले छोड़ जाती हैं kachhi उम्र की लडकिया इन्टरनेट और टी.वी से प्राप्त ज्ञान से बहुत जल्दी बड़ी हो जाती हैं और सही गलत भूल जाती हैं ....दादी और नानी के साथ रहना आजकल के बच्चे भी गवारा नही करते क्युकी उनके मन में अपरोक्ष रूप से उनकी माँ ही स्वतंत्रता का पाठ पढ़ा रही होती हैं अपनी स्वतंत्रता के नाम पर ........ समाज में आज अगर यह विसंगतिया आरही हैं उसके जिम्मेदार सिर्फ पुरुष नही हैं महिलाए भी हैं और संतान को दी जाती उनकी शिक्षा भी ............... एक परिवार का वातावरण अगर सही हो तो कोई भी लड़का या लड़की ऐसे किसी के बरगलाने में आकर अपना जीवन ख़राब नही करती और नाही संयुक्त परिवार के बच्चे मानसिक रूप से इतने कमजोर होते हैं कि जल्दी से दूसरो के प्रभाव में आजाये .......... समय की मांग हैं हमें अपने पारावारिक ढांचों की एक बार फिर से समीक्षा करनी होगीबच्चो पर विश्वास करे लेकिन अंधा नही उनकी मन की और शरीर की भाषा भी पढ़ना सीखे ....... पैसे कमाना एक कला हैं तो परिवार सम्हालना भी विज्ञान ......... ऐसा न हो कल विदेशो की तर्ज़ पर यहाँ भी गुड पेरेंटिंग की कक्षाए लगने लगे और घर के बुजुर्ग किसी वृद्ध आश्रम में सिसकिया लेते रहे .आज की युवा पीढ़ी कल बुजुर्ग होगी ......याद रहे ...........समय हैं आरुशी हत्याकांड से अपने आस- पास का वातावरण सुधारने का .न की तबसरा करने का / कोर्ट की सजा /गुनाह ठहराना एक दम जायज और आने वाले समय में माता - पिता को सबक .........
नीलिमा शर्मा
नीलिमा शर्मा