पिछले कुछ दिनों से मन बहुत विचलित हैं . बार बार माँ के घर फ़ोन करके पूछती हूँ कि सब ठीक से हो न , कोई भी सरवट या पचेंडा की तरफ मत जाना , बच्चोको घर के अंदर रखना , बार बार अपना मुज़फ्फर पेज ओपन करती हूँ बार बार वहां पर लोगो के कमेंट पढ़ती हूँ .. बस सब ठीक हो यह प्रार्थना भी करती हूँ .
वैसे कोई पहलीबार मुज़फ्फरनगर इस तरह दंगो की चपेट मैं नहीआया हैं , यहाँ पर लोग बहुत ही असहिष्णु हैं , जरा जरा सी बात पर मार - काट की किस्से यहाँ के लोकल अखबारों मैं अक्सर पढने को मिलते हैं . पैस से बहुत ही अमीर परन्तु जल्दी ही गुस्से में आजाने वाले यहाँ के मूल निवासी जब दोस्ती करते हैं तो भी ज़मकर और जब खुंदक में आ जाते हैं तो भी न आव देखते हैं न ताव, तब कितना नुकसान हुआ उसको देखकर बाद मैं पश्चाताप भी बहुत करते हैं . आपसी सौहर्दय से भी रहते हैं यहाँ बहुत सारे लोग . ईद पर और दीवाली पर अक्सर यह सौहर्दय देखने को मिलता नगर क्षेत्र मैं ... जिस बात को लेकर यह दंगा हुआ छोटी बात तो नही थी अपनी बहन को छेड़ने पर भाई का सामने आना लाजमी था .हाँ उसके बाद जो कतल-इ- आम हुआ वोह गलत हुआ ..और उस आग में हिन्दू और मुसलमान दोनों सम्प्रदायों के नेताओ ने जो रोटिया सेंकी हैं उस'से उन्हें फायदा होगा या नही समय बताएगा परन्तु आज न जाने कितने घर उजाड़ गये . पंचायत मैं गये लोगो पर जब घात लगाकर हमला बोला गया तो ना जाने कितने बूढ़े जवान गायब हो गये नदी में कूद कर जान बचानी पढ़ी कुछ लोगो को ... नेट पर खबरे पढ़कर जब माँ को सुनाई तो माँ बोली ऐरे ऐसा तो जब पकिस्तान बना था तब हुआ था इस तरह घात लगाकर हमला . अफवाहों का बाजार इस वक़्त बहुत गरम हैं पता नही कितना सच हैं कितना झूठ , एक बाजार में मुस्लिम की दुकाने जला दी गयी उनके बच्चे भी उसी दुकान की कमाई से जिन्द्दगी के सपने बन रहे थे , बात परवरिश की हुयी बात माहौल की हुई जरा सा संयम देखाने से आज घरो में सिसिकिया और आशंकाए न गूंज रही होती .आज हर मं दिर मस्जिद में अपनी अपनी कौम की मीटिंग्स हो रही हैं सेना गश्त लगा रही हैं ..........कभी कभी तो मैं सोचती हूँ यह सेना बनी किस लिय थी बाहरी दुश्मनों से रक्षा के लिय या यह घर के लोगो को आपस में लड़ने पर बिच बचाव करने के लिय .जरा सा कुछ होता नही कि सेना को बुला लो ऐरे जब सेना ही सब काम करेगी तो यह पुलिस या नेताओ और प्रशासनिक अधिकारियों की जरुरत ही क्या हैं नए कप्तान जो यहाँ के लोग का मिजाज नही जानते क्या सम्हाल पाएंगे ?
मेरी प्रार्थना हैं उन सब पिताओं से जिनके बच्चे भी उनके साथ आज असलहे लेकर घूम रहे हैं देखना आज नही तो कल इस असलहे तुम्हारे ही किसी अपने का खून भी बह सकता हैं .....जो पराये को मारने में जरा नही पसीजता वोह एक दिन अपने पर भी दया नही खायेगा वक़्त संयम का हैं अपने धर्म और कौम की इज्ज़त करे परन्तु हाँ और न के बीच एक पारदर्शी दीवार होती हैं इसलिय एक बार सोचे
दिल दुःख रहा हैं देखकर , बताकर . के हम मुज़फ्फरनगर वाले हैं ...... कल ऐसा न हो कि हम कहे किसी को कि हम मुज़फ्फरनगर वाले हैं तो लोग कहे ऐरे वही न "जहा न हिन्दू किसी का न मुसलमान किसी का
अरे बचा नही वहाँ तो अब ईमान किसी का "
Neelima sharrma
सब कुछ जल्दी सामान्य हो की प्रार्थना के साथ
—वैसे कोई पहलीबार मुज़फ्फरनगर इस तरह दंगो की चपेट मैं नहीआया हैं , यहाँ पर लोग बहुत ही असहिष्णु हैं , जरा जरा सी बात पर मार - काट की किस्से यहाँ के लोकल अखबारों मैं अक्सर पढने को मिलते हैं . पैस से बहुत ही अमीर परन्तु जल्दी ही गुस्से में आजाने वाले यहाँ के मूल निवासी जब दोस्ती करते हैं तो भी ज़मकर और जब खुंदक में आ जाते हैं तो भी न आव देखते हैं न ताव, तब कितना नुकसान हुआ उसको देखकर बाद मैं पश्चाताप भी बहुत करते हैं . आपसी सौहर्दय से भी रहते हैं यहाँ बहुत सारे लोग . ईद पर और दीवाली पर अक्सर यह सौहर्दय देखने को मिलता नगर क्षेत्र मैं ... जिस बात को लेकर यह दंगा हुआ छोटी बात तो नही थी अपनी बहन को छेड़ने पर भाई का सामने आना लाजमी था .हाँ उसके बाद जो कतल-इ- आम हुआ वोह गलत हुआ ..और उस आग में हिन्दू और मुसलमान दोनों सम्प्रदायों के नेताओ ने जो रोटिया सेंकी हैं उस'से उन्हें फायदा होगा या नही समय बताएगा परन्तु आज न जाने कितने घर उजाड़ गये . पंचायत मैं गये लोगो पर जब घात लगाकर हमला बोला गया तो ना जाने कितने बूढ़े जवान गायब हो गये नदी में कूद कर जान बचानी पढ़ी कुछ लोगो को ... नेट पर खबरे पढ़कर जब माँ को सुनाई तो माँ बोली ऐरे ऐसा तो जब पकिस्तान बना था तब हुआ था इस तरह घात लगाकर हमला . अफवाहों का बाजार इस वक़्त बहुत गरम हैं पता नही कितना सच हैं कितना झूठ , एक बाजार में मुस्लिम की दुकाने जला दी गयी उनके बच्चे भी उसी दुकान की कमाई से जिन्द्दगी के सपने बन रहे थे , बात परवरिश की हुयी बात माहौल की हुई जरा सा संयम देखाने से आज घरो में सिसिकिया और आशंकाए न गूंज रही होती .आज हर मं दिर मस्जिद में अपनी अपनी कौम की मीटिंग्स हो रही हैं सेना गश्त लगा रही हैं ..........कभी कभी तो मैं सोचती हूँ यह सेना बनी किस लिय थी बाहरी दुश्मनों से रक्षा के लिय या यह घर के लोगो को आपस में लड़ने पर बिच बचाव करने के लिय .जरा सा कुछ होता नही कि सेना को बुला लो ऐरे जब सेना ही सब काम करेगी तो यह पुलिस या नेताओ और प्रशासनिक अधिकारियों की जरुरत ही क्या हैं नए कप्तान जो यहाँ के लोग का मिजाज नही जानते क्या सम्हाल पाएंगे ?
मेरी प्रार्थना हैं उन सब पिताओं से जिनके बच्चे भी उनके साथ आज असलहे लेकर घूम रहे हैं देखना आज नही तो कल इस असलहे तुम्हारे ही किसी अपने का खून भी बह सकता हैं .....जो पराये को मारने में जरा नही पसीजता वोह एक दिन अपने पर भी दया नही खायेगा वक़्त संयम का हैं अपने धर्म और कौम की इज्ज़त करे परन्तु हाँ और न के बीच एक पारदर्शी दीवार होती हैं इसलिय एक बार सोचे
दिल दुःख रहा हैं देखकर , बताकर . के हम मुज़फ्फरनगर वाले हैं ...... कल ऐसा न हो कि हम कहे किसी को कि हम मुज़फ्फरनगर वाले हैं तो लोग कहे ऐरे वही न "जहा न हिन्दू किसी का न मुसलमान किसी का
अरे बचा नही वहाँ तो अब ईमान किसी का "
Neelima sharrma
सब कुछ जल्दी सामान्य हो की प्रार्थना के साथ