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Tuesday, July 9, 2013

बूढ़ा मरता क्यों नी !!!

रिश्ते  कितने मुश्किल होते हैं आजकल . एक जमाना था सबसे आसान  रिश्ता था  माँ- बाप का बच्चो से  और बच्चो का माँ- बाप से  ,उसके बाद  भाई और बहन का   उस बाद के  सारे रिश्ते दुरुहता लिय हुए होते थे  परन्तु आज यह रिश्ता  जो सबसे प्यारा था आज भोतिकता वाद की भेँट  चदता जा रहा हैं . आज बच्चो के लिय उस उम्र तक ही माता  पिता सहनीय होते हैं  जब तक उनका अपना परिवार न बन जाए  , माता पिता  का बनाया ८ कमरों का मकान  और एक वक़्त ऐसा भी उनके लिय एक कमरा   भी मयस्सर नही होता  , माना  समाज में परिवर्तन होते हैं  परन्तु रिश्तो में  जो  खोखलापन या  रुपयावाद  हावी हो गया हैं  उसने आज समाज में   बुजुर्गो की स्तिथि बहुत दयनीय बना दी हैं  , माना कि  कुछ बुजुर्ग  इस उम्र में असहिष्णु   हो जाते हैं परन्तु उनके बच्चे भूल जाते हैं कि  आज उन में  जो जज्बा हैं यह इन्ही की बदोलत हैं  पश्चिम उत्तर प्रदेश की अखबारे अगर आप कभी पढ़े तो उसमे  सबसे ज्यादा खबरे व्यभिचार और दुसरे नम्बर पर बुजुर्गो पर अ त्याचार की होती हैं  . एक बीघा जमीन के लिय पिता को फावड़े से मार  देना ,  जमीन के कागजो पर  माता पिता  को म्रृत घोषित कर देना आम सी बात हो गयी हैं .इंसान जितनी मर्ज़ी लम्बी कार लेकर घूम रहा हैं उतनी ही छोटी अपनी सोच कर रहा हैं  आज के लोग   गर्व करते हैं कि  हमने अपने एक्लोते बच्चे को विदेश भेज कर पदाई करा दी  हमने फलां जगह भंडारा करा दिया  परन्तु घर में उनके बुजुर्गो ने अगर कभी अपनी पसंद की सब्जी केलिए  कह दिया तो घर भर में क्लेश हो जाना लाजिमी हैं  . कहने को पश्चिमी उत्तर प्रदेश    व्यापार  की दृष्टि से उन्नति कर रहा हैं सबसे ज्यादा आयकर इसी एरिया से जमा होता हैं सरकार को  परन्तु सबसे ज्यादा सामाजिक मूल्यों का हनन भी यही पर ही होता  हैं  सबसे  बड़ी बात यह हैं कि   घर भर में अपमान प्रताड़ना  और कही कही मार  पीट सहते हुए बुजुर्ग भी उस दायरे से बाहर नही आना चाहते   यह सोच कर कि  उनके पास अब जिन्दगी के बचे ही कितने दिन हैं , मैं तो कहती हूँ कि क्यों दिखाते हो ताजमहल विदेशियों को ....उनको कहो  कि  आकर के देखो यहाँ के बुजुर्गो को जिनके बच्चे भी उनको  जीने के लिय ओल्ड ऐज होम नही भेजना चाहते  परन्तु जीते जी जीने भी नही देना चाहते उनको दीखाना चाहिए कि  यह होती हैं सहन शीलता . काश यहाँ भी  विदेशो की तरह पुलिस होती जो एक काल भर से आ जाती 

 क्या कोई संस्था  हैं ऐसे जो इस पर पहल करे ...क्या कोई कानून हैं ऐसा जो ऐसे बुजुर्गो की अंतिम सांसे उनको सिसकते हुए न लेने दे  . सब सस्थाए भी  यही कहती हैं  कि  अगर लिखित में  शिकायत दर्ज हो  तभी कार्यवाही होगो .पर बुजुर्ग अगर लिखित में दे भी दे तो उनके बच्चे मनी के रसूख पर  मामला ही उल्टा देते हैं और पुलिस वाले ( काश यहाँ भी  विदेशो की तरह पुलिस होती जो एक काल भर से आ जाती )भी कह देते हैं ......." ओ ताऊ तेरे से  ताई संग घरे न बैठा  जाता एब आराम से  यो तेरे चुप चाप दो जून रोटी खाने के दिन .और तुझे  बच्चो की आजादी खल री  .जा आराम से बैठ घर जा के . वरना  कोई अर्थी को कन्धा भी न देगा लावारिस मर जाएगा " और वोह  बुजुर्ग  अपने अगले जन्म की खातिर उस बेटे के कंधे पर अर्थी मैं जाने की baat जोहता हैं जो उसकी जमीन जायदाद को उस सेमार पीट कर  छीन लेता हैं  और रोटी के एक एक टुकड़े को तरसा देता हैं   और माँ- बाप के मरने के बाद पूरी बिरादरी में कम्बल बाँट'ता  हैं  भोज का आयोजन करता हैं कि पिता जी को बड़ा किया था सुख से उम्र बीता के गये  हमारे बाबा जी / अम्मा जी ........... 

Tuesday, July 2, 2013

बच्चा हो बस एक , रिश्तो को न लगे सेंक .

क्या कहूँ ?अब तो थक गयी हूँ मैं . जिस घर से ब्याही जाती हैं लडकिया डोली उठ ते ही घर पराया हो जाता हैं और जिस घर पहुँचती हैं डोली वहां जाते ही कह दिया जाता हैं अपने घर से क्या लायी ? एक नारी की बिसात क्या हैं बस शतरंज का खेल हैं सब अपनी अपनी चाले चलते हैं कभी इधर वाले जीत जाते हैं कभी उधर वाले . पर दोनों ही नारी को उधर वाली समझते हैं अपने पाले की नही , सारा दिन मरती खपती हूँ तो घर का सारा इंतजाम सही से चलता हैं एक दिन की छुट्टी भी नही मिलती मायके वाले जब तब अपना रोना रोते रहते हैं कि तुम तो सही से रह रही हो अपने घर में यहाँ तुम्हारे बूढ़े माँ- बाबा को हम देखे न कही आने के ना जाने के , अब कोई पूछे जब बाबा का मकान जमीन कब्जाई तो पुछा था मुझसे .कि तुमने कैसे बच्चो की फीस का इंतजाम किया इधर सब कह देते हैं बड़े बाप की बेटी हैं ५ ० ० रूपये भी यु देते हैं जैसे अहसान कर रहे हो , लडकियों का भी हक हैं कि नही जमीन जायदाद में . अब किदर की सोचे . मैं न इधर कुछ कह सकू न उधर , एक बार भाई के सामने यूँ ही कह दिया था कि बाबा का ख्याल कर ......... यूँ गाली गलोज न किया करो बस उस पर पैसे का नशा ऐसे सर चढ़ कर बोलता हैं जैसे देसी दारू हो ......बस एक दम से कह दिया जा तेरे से सारे रिश्ते नाते ख़तम न तुम अब से हमारी न हम तेरे कुछ ....अब डर लगने लगा तब से कल मेरे बेटे की शादी होगी मामा नही आया तो सब कह देंगे लो बड़े बाप का बेटा हैं आया नही ............. सौ बात मुझे सुन ने को मिल जाएगी अब आदमी भी तब तक अपने होवे जब तक सब उनके मुताबिक हो \ जरा भी -इधेर उधर हो जाये तो जूते मरने को दौड़ते हैं कुछ तो अप्सरा जैसे बीबी के भी माँ- बाप भी ऐसे गाली सुना लेते हैं कि हम ओरत जात की आँखे पानी पानी हो जाए
यह बात सिर्फ हमारे तबके की नही पढ़े लिखे लोगो में भी भाई भाभी आजकल कितना पूछते हैं यह भाभियाँ भी अपने मायके की उतनी ही सताई होती हैं फिर भी जब बात रिश्तो की आती हैं एक अजीब सी खुमारी चड़ जाती हैं सब पर अपने कुछ होने की ....... अब थक गयी हूँ आज मायके से फिर भाई का संदेसा आया हैं या तो बाबा से सारी जमीन के कागज पर दस्तखत करा दे या फिर तेरा मेरा रिश्ता ख़तम .अब आप ही बताओ क्या करू ............? माँ- बाबा ने कोण सा मेरी सुध ली कभी ? बस ब्याह कर दिया और कह दिया अब तेरी किस्मत और तेरे सुख दुःख तेरे हाथ की लकीरे ....... मैं कहाँ हूँ / अछहा हुआ न मेरी एक ही ओलाद हैं अब जायदाद में किसी से झगडा नही करेगा अब तो सरकार को कहना चाहिए बच्चा हो बस एक , रिश्तो को न लगे सेंक .

आज सुबह काम वाली किरण के रोते हुए दिल की बयानी