Tuesday, July 2, 2013

बच्चा हो बस एक , रिश्तो को न लगे सेंक .

क्या कहूँ ?अब तो थक गयी हूँ मैं . जिस घर से ब्याही जाती हैं लडकिया डोली उठ ते ही घर पराया हो जाता हैं और जिस घर पहुँचती हैं डोली वहां जाते ही कह दिया जाता हैं अपने घर से क्या लायी ? एक नारी की बिसात क्या हैं बस शतरंज का खेल हैं सब अपनी अपनी चाले चलते हैं कभी इधर वाले जीत जाते हैं कभी उधर वाले . पर दोनों ही नारी को उधर वाली समझते हैं अपने पाले की नही , सारा दिन मरती खपती हूँ तो घर का सारा इंतजाम सही से चलता हैं एक दिन की छुट्टी भी नही मिलती मायके वाले जब तब अपना रोना रोते रहते हैं कि तुम तो सही से रह रही हो अपने घर में यहाँ तुम्हारे बूढ़े माँ- बाबा को हम देखे न कही आने के ना जाने के , अब कोई पूछे जब बाबा का मकान जमीन कब्जाई तो पुछा था मुझसे .कि तुमने कैसे बच्चो की फीस का इंतजाम किया इधर सब कह देते हैं बड़े बाप की बेटी हैं ५ ० ० रूपये भी यु देते हैं जैसे अहसान कर रहे हो , लडकियों का भी हक हैं कि नही जमीन जायदाद में . अब किदर की सोचे . मैं न इधर कुछ कह सकू न उधर , एक बार भाई के सामने यूँ ही कह दिया था कि बाबा का ख्याल कर ......... यूँ गाली गलोज न किया करो बस उस पर पैसे का नशा ऐसे सर चढ़ कर बोलता हैं जैसे देसी दारू हो ......बस एक दम से कह दिया जा तेरे से सारे रिश्ते नाते ख़तम न तुम अब से हमारी न हम तेरे कुछ ....अब डर लगने लगा तब से कल मेरे बेटे की शादी होगी मामा नही आया तो सब कह देंगे लो बड़े बाप का बेटा हैं आया नही ............. सौ बात मुझे सुन ने को मिल जाएगी अब आदमी भी तब तक अपने होवे जब तक सब उनके मुताबिक हो \ जरा भी -इधेर उधर हो जाये तो जूते मरने को दौड़ते हैं कुछ तो अप्सरा जैसे बीबी के भी माँ- बाप भी ऐसे गाली सुना लेते हैं कि हम ओरत जात की आँखे पानी पानी हो जाए
यह बात सिर्फ हमारे तबके की नही पढ़े लिखे लोगो में भी भाई भाभी आजकल कितना पूछते हैं यह भाभियाँ भी अपने मायके की उतनी ही सताई होती हैं फिर भी जब बात रिश्तो की आती हैं एक अजीब सी खुमारी चड़ जाती हैं सब पर अपने कुछ होने की ....... अब थक गयी हूँ आज मायके से फिर भाई का संदेसा आया हैं या तो बाबा से सारी जमीन के कागज पर दस्तखत करा दे या फिर तेरा मेरा रिश्ता ख़तम .अब आप ही बताओ क्या करू ............? माँ- बाबा ने कोण सा मेरी सुध ली कभी ? बस ब्याह कर दिया और कह दिया अब तेरी किस्मत और तेरे सुख दुःख तेरे हाथ की लकीरे ....... मैं कहाँ हूँ / अछहा हुआ न मेरी एक ही ओलाद हैं अब जायदाद में किसी से झगडा नही करेगा अब तो सरकार को कहना चाहिए बच्चा हो बस एक , रिश्तो को न लगे सेंक .

आज सुबह काम वाली किरण के रोते हुए दिल की बयानी
 

2 comments:

ब्लॉग बुलेटिन said...

ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन दिल और दिमाग लगाओ भले बन जाओ - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

नीलिमा शर्मा Neelima Sharma said...

shukriya Shivam ji