Monday, August 26, 2013

माँ फिर कब आओगी

आज सुबह माँ की बहुत याद आरही थी मन कर रहा था कि बस एक बार नजर भर देख लू उनको सब कह रहे हैं कि माँ बहुत कमजोर हो गयीं हैं पीठ भी झुकने सी लगी हैं ...पर कभी अपनी तबियत और कभी घर की मसरूफियते जाने ही नही देती थी .आज ११ बजे पापा का फ़ोन आया की तुम्हारी माँ का मन बहुत उदास हैं तुमसे मिलने को ...तुम क्या बना रही हो? बिना प्याज का खाना बनाना तुम्हारी माँ और मैं तुम्हे मिलने आ रहे हैं बस २५-३० मिनट्स का लगेगे हमें पहुँचने में ...... सुस्ताई सी चाल में फुर्ती भर गयीं घर में शोर मच गया माँ आरही थी अरसे बाद मेरे घर बेटे ने जल्दी से डस्टिंग की बेडशीट्स बदल दी और मैंने रसोई में मोर्चा सम्हाला जहाँ आज दोपहर का मेनूखिचड़ी था वहाँ पनीर और दाल और करेले बन गये .पापा की पसंद के बिस्कुट मंगवाए .और माँ के आने पर जब हाथ पकड़ कर उनको इन्नोवा से उतारा आँसू ही नही थम रहे थे मन ने बस चाह की समय रूक जाए यही मैं फिर से बच्ची बन जाऊ पर बच्चे मुझे यु देखकर हैरान थे .५ साल से होस्टल में रहने वाला बेटा बोला माँ आप बड़ी मम्मी को देख आज २४ साल बाद ही इतनी भावुक हो रही हो जब शादी होकर आई थी तब क्या हाल रहा होगा ...अब कोई कैसे बताये माँ - बेटी के रिश्ते मैं उम्र या सालो बाद मिलना मायने नही रखता ... ढेर साडी बाते की माँ के साथ पापा के साथ .. मेरी लिखी कविताये पढ़ी उन्होंने पर माँ बोली मेरे घर आने वाली अखबार में छपनी चाहिए तेरी लिखी कोई कहानी या कविता ...तो अब जीजू anil royal ji माँ की यह इच्छा पूरी करनी हैं .चलते चलते पापा Malik rajkumar ji का लिखा उपन्यास बाईपास ले गये और खुश भी हुए यह तो अपने पासे का बंदा हैं ..... माँ का लाया सूट और मुठ्ही में पकडाया हुआ  ५०० का नोट मेरी जिन्दगी की सबसे कीमती धरोहर हैं  स्नेह से भीगा यह नोट  ..................

माँ ऐसे ही होती हैं न ............. हाँ मेरी माँ ऐसे ही हैं .पर जाते जाते न जाने ऐसा क्यों कह गयीं के मेरी जिन्दगी थोड़ी हैं अब ..एक बार आ जा कुछ दिन को साथ रहने .......और दिल किया माँ का हाथ पकड़ कर मैं भी बैठ जाऊ इन्नोवा में .पर धियान जम्देयाँ हों परायियाँ ..... ........फिर माँ ने मेरे आँसू देख खुद ही कहा अच्छा अब उदास मत हो जल्दी आऊंगी मैं वापिस ...............

मैंने हाथ थाम कर कहा.....कही नही जाना तुमने समझी ना जब तक मेरे दोनों बेटो के बच्चो की बड़ी वाली मम्मी नही बन जाती ....माँ भोली सी हंसी हंस दी ......... और मैं .................. खोयी हूँ माँ की यादो में ........

Monday, August 12, 2013

क्यों बेच रही हो ? कबाड़ी को

"मम्मा!!! क्या है आपको
?क्यों बेच रही हो ? कबाड़ी को मेरे रबड़ , शार्पनर और यह बैटमैन वाले कार्ड्स पता हैं कितनी मुश्किल से मिले थे ...और यह मेरे कॉमिक्स हाय यह स्टोरी बुक्स भी रस्किन बांड का पूरा कलेक्शन इकठ्ठा करने में मैंने कितनी बार दोस्तों के साथ बाहर बंद टिक्की मिस की ,और यह मेरी सारी खिलौना कार रखो न इनसबको वापिस उसी दादी वाले लोहे के बॉक्स में ."
बेटे की सब चीजे वापिस सहेजते हुए सोचने लगी मैं .......कि क्या मैं अपनेसामान को फेंक पाई हूँ वोह टूटा हुआ फूलदान वोह चूड़ियाँ जिन्हें बरसो से नही पहना , शादी वाले सूट , सहेलियों के दिए तोहफे . अपने हाथ से कढ़ाई किये पर अब पुराने हो चुके मेजपोश
पर सामने से हँसते हुए कहा "अच्छा बाबा रख देती हूँ सारा सामान .जब तुम्हारे बच्चे होंगे न और तुम उनको कुछ ला कर देने से मना करोगे तो तब उनको दीखाऊंगी कि कितना शैतान था तुम्हारा पापा ..अब तो खुश ना ."..
"जा कबाड़ी को बोल कल आना .पापा की अलमारी कल खोलेंगे " — feeling amused.

Sunday, August 11, 2013

सोच की परिधि

कितना भी सोचु कि अभी नही सोचूंगी पर सोचे फिर भी बार बार तुम्हे ही सोचती हैं और
सोच की परिधि से बाहर जाकर तुम " मैं" बन जाते हो और मैं खुद को भूल जाती हूँ .ये मन भी कितना बावला होता है न जिसको सोचना नही चाहिए वही सोचता हैं और जिन बातो को हमेशा अपनेदिमाग में रखना चाहिए वोह याद नही रखता हम हमेशा दायरों में रहकर अपनी सोचो को संकुचित रखते हैं तो तो भी सोचे बगावत कर जाती हैं . यह सोचे ही कभी हमें आसमान की अनंत उडान तो कभी रसातल की तरफ ले जाती हैं .सोचना इंसानी फितरत हैं इसलिय मैं भी सोचती हूँ बहुत कुछ ......हाँ बहुत कुछ ...पर आजतक मन का पक्षी अपनी उडान नही भर पाया .आज तक सोचे धरातल पर नही उतरी .आज तक त्रिशंकु की मानिद अटकी हैं .... नही सोच पाती मैं" तुम" बनकर और तुम बन' ना कोई आसान थोड़े हैं तुम तुम हो इसिलिय मैं सिर्फ मैं ही रह गयी हूँ सोचो में तुमको सोचते हुए अपने मन के कोने से ...........नीलिमा

Thursday, August 8, 2013

ईद मुबारक आपको .तीज मुबारक मुझको

 जानते भी हो कल क्या हैं !!! ईद हैं ईद ! आपका  जन्मदिन  इसी दिन हुआ था न  बाबा आपको  इदू कहकर पुकारते थे    माना कि हम हिन्दू हैं  पर इस दिन सेवइयां तो जरुर बनती हैं हमारे यहाँ .आ जाओ न  जल्दी से 
 और हाँ कल तीज भी हैं  , यह भी हमारे यहाँ नही मनाई जाती हैं पर मुझे हर साल  चूड़ियाँ तो दिलाते हो न आप और मेरे हाथो में मेहंदी भी  रचती हैं  ... ले आई हूँ मैं बाजार से चूड़ियाँ।।हाँ!  धानी रंग की ही  और मेहंदी का कोन भी .और सामने रखे सोच रही हूँ  तुम तो नही आओगे तो क्या फायदा मेहंदी का चूडियों का ..... रख देती हूँ अलमारी मैं .......जब तुम आऊगे न उसी दिन  सेवइयां भी बना लूंगी  और चूडियाँ भी पहन लूंगी मेहंदी लगाकर .......... अब नौकरी करनी हैं आपको तो क्या  मेरे नखरे , मेरे त्यौहार ( सरकार के खाते में भावनाओ की कदर नही )  जाओ कराओ अपने ऑफिस का निरीक्षण अपने  अधिकारियो  से :((
ईद मुबारक आपको .तीज मुबारक मुझको