कागज कोरा हैं .हर्फ क्या लिखू . दिल की बात लिख नही सकती जो लिखूंगी भी तो निरा झूठ होगा पर तुम तब भी उस में ढूंढ ही लोगे अपने हिस्से का सच यह तुम पुरुष ऐसे क्यों होते हैं जब लफ्जों से कुछ कहो तो शायद समझ कर भी नही समझते और जब मौन होकर भी सामने से गुजर जाओ यह सारे मनोभाव पढ़ लेते हैं . कभी कभी हैरानी होती हैं पुरुष इतने धीर गंभीर चुप्पे से कैसे हो सकते हैं छोटी छोटी बातो पर खुश होकर भी खुश नही दीखते बड़े बड़े गम भी विचलित कर जाए तो भी संयत रहते हैं .बहुत कम देखा हैं पुरुषो का बिखरना ...... एक स्त्री घर चलाती हैं तो सब उसे महान होने का दर्ज़ा दे देते हैं एक पुरुष भी उम्र भर पैसे कमाकर उसी घर को चलता हैं तो वोह महान क्यों नही . कमियाँ स्त्री पुरुष दोनों में होती हैं अगर पत्निया पति पीड़ित होती हैं तो कई पुरुष भी तो पत्नी पीड़ित होते हैं लेकिन यह स्त्री विमर्श ही क्यों होता हैं पुरुष विमर्श क्यों नही ..रिश्ते सिर्फ स्त्री ही नही ढोती पुरुष भी ढोता हैं स्त्री अपनी सखी सहेलियों बहनों के सामने अपना रोष प्रकट करके सामान्य हो जाती हैं परन्तु पुरुष ज्यादा से ज्यादा अपनी पत्नी के सामने ही रोष प्रकट करना चाहता हैं तब उसे पत्नी को शोषित करने का आरोप लगा दिया जाता हैं ... स्त्रिया पुरुष बन जाना चाहे और पुरुष स्त्रीयोचित व्यवहार करे तो दिक्कत हैं ...... असली अस्तित्व पुरुष के पुरुष बने रहने में हैं स्त्री के स्त्री बने रहने में हैं ....
पता हैं आज अखबार पढ़ रही थी ....आज की नही कई साल पुरानी बक्से में बिछाई थी कभी कई साल पहले .एक खबर पर नजर पढ़ गयी . स्त्रियाँ जब पैसे कमाती हैं उनके मन में हमेशा यह भाव रहता हैं मेरे पैसे ....... मैंने कमाए ....... मैंने खर्च किये मैंने घर सम्हाला .. मैंने तुम्हारी परिवार के लिय यह किया ....... सब ऐसा नही करती सो कृपया अपने तर्क न दे इस बात पर मुद्दे को समझे परन्तु ज्यादातर पुरुष घर के लिय पैसे देते हैं चाहे कम दे ज्यादातर पुरुष चुप रहते हुए घर के लिय भरसक करने की कोशिश करते हैं और स्त्री अगर लचीले स्वाभाव की होती हैं तो पुरुष उदार होता चला जाता हैं ....... जैसे लडकियों को बचपन से ससुराल सास ससुर का होव्वा सताता हैं वैसे ही लडको को भी बीबी ऐसे होती वैसे होती का ....... अगर स्त्री अपना घर छोड़ कर आती हैं तो पुरुष भी अपने परिवार के साथ उसकी स्त्री का समंज्स्स्य कैसे हो की कोशिश करता ...... जब लड़की में लचीलापन न हो और लड़के में समझदारी तो फॅमिली में विग्रह होना शुरू हो जाता हैं ...... आप सब कहेगे आज मुझे क्या हुआ यह सब ...........एक्चुअली आज मेरी सहेली के घर यही सब हुआ पुरुष चुप्पा शख्स हैं और स्त्री महान हैं और परिवार परेशान हैं ऐसे में मुझे अपनी माँ की एक सीख याद आती हैं जो वोह अक्सर हम सब से कहती थी .की तुम शादी करके अहसान नही कर रही हो किसी लड़के पर , इश्वर ने स्त्री बनायीं हैं सृष्टि का सृजन करने के लिय और पुरुष को साधन बनाया हैं परन्तु जब भी साधनों का तुम मानसिक शोषण करोगी तो सृष्टि का सृजन सही से नही होता और एक कुंठित समाज जन्म लेगा इसलिय तुमको शादी के बाद सिर्फ २-३ बरस उनके हिसाब से चलना होगा जैसे उनके परिवार की संस्कार होगे आदते होगी ......... यह २-३ बरस अगर तुमने धीरज से काट लिय तो तुम्हारा पति और उसका परिवार तुम्हारा होगा .लेकिन अगर २-३ माह बाद ही तुम अपने भीतर की स्त्री को जगा दोगी और भोग लिप्सा जाग्रत हो जायेगी तुम्हारे भीतर चाहे वोह भोग लिप्सा अधिकारों की हो या साधनों की ..........तुम एक अछि स्त्री नही बन सकोगी ..... आखिर घर के दस लोग तुम्हारे अनुसार बदले ..और तुम एक उनके अनुसार खुद को न ढालो ......आज जैसा करोगी कल तुम्हारी संतान भी उसका दुगुना तुम्हारे साथ करेगी ....... स्त्रीत्व का सम्मान करना परन्तु अपने स्व की रक्षा करते हुए आत्म सम्मान के साथ दुसरे की आत्मसम्मान की इज्ज़त करते हुए ..................
.कभी कभी लगता हैं यह माँ मेरी ही ऐसी हैं या सबकी माँ उनको कोई न कोई सूत्र वाक्य देती हैं जिन्दगी को जीने के लिय ........... प्लीज शेयर करिए न अपनी माँ के दिय सूत्र वाक्य .........
— पता हैं आज अखबार पढ़ रही थी ....आज की नही कई साल पुरानी बक्से में बिछाई थी कभी कई साल पहले .एक खबर पर नजर पढ़ गयी . स्त्रियाँ जब पैसे कमाती हैं उनके मन में हमेशा यह भाव रहता हैं मेरे पैसे ....... मैंने कमाए ....... मैंने खर्च किये मैंने घर सम्हाला .. मैंने तुम्हारी परिवार के लिय यह किया ....... सब ऐसा नही करती सो कृपया अपने तर्क न दे इस बात पर मुद्दे को समझे परन्तु ज्यादातर पुरुष घर के लिय पैसे देते हैं चाहे कम दे ज्यादातर पुरुष चुप रहते हुए घर के लिय भरसक करने की कोशिश करते हैं और स्त्री अगर लचीले स्वाभाव की होती हैं तो पुरुष उदार होता चला जाता हैं ....... जैसे लडकियों को बचपन से ससुराल सास ससुर का होव्वा सताता हैं वैसे ही लडको को भी बीबी ऐसे होती वैसे होती का ....... अगर स्त्री अपना घर छोड़ कर आती हैं तो पुरुष भी अपने परिवार के साथ उसकी स्त्री का समंज्स्स्य कैसे हो की कोशिश करता ...... जब लड़की में लचीलापन न हो और लड़के में समझदारी तो फॅमिली में विग्रह होना शुरू हो जाता हैं ...... आप सब कहेगे आज मुझे क्या हुआ यह सब ...........एक्चुअली आज मेरी सहेली के घर यही सब हुआ पुरुष चुप्पा शख्स हैं और स्त्री महान हैं और परिवार परेशान हैं ऐसे में मुझे अपनी माँ की एक सीख याद आती हैं जो वोह अक्सर हम सब से कहती थी .की तुम शादी करके अहसान नही कर रही हो किसी लड़के पर , इश्वर ने स्त्री बनायीं हैं सृष्टि का सृजन करने के लिय और पुरुष को साधन बनाया हैं परन्तु जब भी साधनों का तुम मानसिक शोषण करोगी तो सृष्टि का सृजन सही से नही होता और एक कुंठित समाज जन्म लेगा इसलिय तुमको शादी के बाद सिर्फ २-३ बरस उनके हिसाब से चलना होगा जैसे उनके परिवार की संस्कार होगे आदते होगी ......... यह २-३ बरस अगर तुमने धीरज से काट लिय तो तुम्हारा पति और उसका परिवार तुम्हारा होगा .लेकिन अगर २-३ माह बाद ही तुम अपने भीतर की स्त्री को जगा दोगी और भोग लिप्सा जाग्रत हो जायेगी तुम्हारे भीतर चाहे वोह भोग लिप्सा अधिकारों की हो या साधनों की ..........तुम एक अछि स्त्री नही बन सकोगी ..... आखिर घर के दस लोग तुम्हारे अनुसार बदले ..और तुम एक उनके अनुसार खुद को न ढालो ......आज जैसा करोगी कल तुम्हारी संतान भी उसका दुगुना तुम्हारे साथ करेगी ....... स्त्रीत्व का सम्मान करना परन्तु अपने स्व की रक्षा करते हुए आत्म सम्मान के साथ दुसरे की आत्मसम्मान की इज्ज़त करते हुए ..................
.कभी कभी लगता हैं यह माँ मेरी ही ऐसी हैं या सबकी माँ उनको कोई न कोई सूत्र वाक्य देती हैं जिन्दगी को जीने के लिय ........... प्लीज शेयर करिए न अपनी माँ के दिय सूत्र वाक्य .........
6 comments:
सम्मान जरूरी है ......
yah bhi jaruri hai ....bahut sahi aur achhe tareeke se apni baat kahi ...
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज बुधवार (29-01-2014) को वोटों की दरकार, गरीबी वोट बैंक है: चर्चा मंच 1507 में "अद्यतन लिंक" पर भी है!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत खरा -खरा लिखा है।
sehmat hun apki baat say....hum aise sochte hi nahi aajkal...
तुम उनके घर में जा रही हो तो समंजस्य बिठाने की ज्यादाजिम्मेवारी तुम पर है । एक बार सब तुम्हें अपना लें फिर तुम रानी।
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