खट से जो दरवाज़ा खोला सामने तुम थे , मुह ढक कर सोये से ,दिल से जोर से धड़क उठा , हाथ कंपाने लगे आँखे भर आई , कितने दिन बाद तुमको देखा ना सबकी जिद थी तुमसे दूर रहू कोशिश भी बहुत की पर तुम बहुत शिद्दत से याद आये , चुपके चुपके तुमको याद करती थी पर डरती थी किसी को भी कहते कि मुझे तुम्हारी याद आ रही हैं तुमने भी शिद्दत से याद नही किया मुझे वरना शाहरुख़ कहता हैं न ज़र्रे ज़र्रे ने मिलाने की साजिश की हैं मुझे तो तुमसे दूर करने की साज़िशे रची इस कमबख्त दुनिया ने , बहुत चाह तुम्हे मैंने . दिल किया जल्दी से तुम्हे छु लू भर लू बाहों में चूम लू तुम्हारा माथा ,भूल जाऊ सुध - बुध , खोजाऊ असीम आनंद में तुम्हारे संग वक़्त का पता ही न चले कब हम एक दुसरे के करीब आये ,हर भाव मन के मैंने तुमसे शेयर किये प्यार वाले भी और उनसे हुए झगडे वाले भी , सच्ची कसम से तुम मुझसे अलग नही . बेवफा !! तुमको मेरी क्या परवाह तुम्हे कोई भी अपना ले उसके हो जाते हो पर तुम्हे मेरे अलावा कोई और छु दे तो मेरा दिल
घबराता हैं , कितना अजीम है न तेरा मेरा रिश्ता ,तुम्हारे दुसरे रूपों ने मुझे लुभाने की कोशिश की पर सिर्फ तुम्हारी दीवानी हूँ , तुम्हे और भी मिल जायेंगे साथ !! पर ..मेरा क्या होगा ? कभी सोचा .. मेरे अकेलेपन के तुम्ही सहारे हो साथी हो ..जाओ मत बनाओ न मुझे अपना आदि ,इतना एडिक्शन अच्छा नही न तेरा ,
अच्छा प्रॉमिस पहले की तरह नही आऊंगी तुम्हारे करीब , पक्का पर अहसान मंद हूँ तुम्हारी तुमने मुझे मेरी इनर सोल से जो मिलवाया सुन!! अब नही रहा जा रहा मुझसे इतने दिन बाद मिली हूँ तो ... कुछ न कुछ तो लिखना बनता है न मेरा तुझको ,तुझपर,
अब आते जाते नजर जो पढ़ रही हैं तुम पर .इतने दिन की छुटिया बिता कर आई हूँ .. आओ न तुम भी बताओ न मेरे पीछे क्या क्या हुआ ?
अरे बेटा !!! जरा इस कंप्यूटर को मेरे कमरे में रख दो और वाई-फाई बंद कर दो
वरना यह नीलिमा फिर से फेसबुक खोल कर निविया बन जायेगी और खो जायेगी उसी दुनिया में !!! ...:D
दिल के अरमान आंसू में बह गये .हम कंप्यूटर के प्रेम में तनहा रह गये उफ्फ्फ मेरा कंप्यूटर !!! और मेरा उसके साथ प्रेम सबको इतना चुभता क्यों हैं ?
14 comments:
जितना दर्द निकाह में सलमा आगा पैदा नहीं कर सकी उतना दर्द यहाँ दिखा
वाह आदरणीया अथाह प्रेम से उत्पन्न ह्रदय के भावों को सुन्दरता से पिरोया है आपने दिल को स्पर्श करती प्रस्तुत के लिए ढेरों बधाई स्वीकारें .
शुक्रिया विभा जी .यह दर्द नही प्रेम हैं मेरा आपका सबका :))
बहुत ही शिद्दत से आपने अपनी अभिव्यक्ति परोसी है।
आभार।
अरुण जी अब एडिक्शन को प्रेम भी कह सकते हैं ना शुक्रिया आपका
शास्त्री जी प्रेरणा देते आपके शब्द हमेशा लिखने के लिय प्रेरित करते हैं शुक्रिया
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज बृहस्पतिवार (10-10-2013) "दोस्ती" (चर्चा मंचःअंक-1394) में "मयंक का कोना" पर भी है!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का उपयोग किसी पत्रिका में किया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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शारदेय नवरात्रों की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
प्रेम है....तो चुभेगा ही :-)
लिखते रहिये...
अनु
इस कम्पूटर से मोया इतना प्रेम ...
पर बहुत ही शिद्दत से लिखा है ... लाजवाब ...
दशहरा की मंगल कामनाएं ...
shukriya anu
digambar naswa ji shukriyaa
जो आसक्ति (आ सकती है )वह जा भी सकती है लेकिन यह सनक है ओबसेशन है जो जाती नहीं है भले कितना अहित हो जाए चीन नहीं आता इसके बिना। ये चिठ्ठा कसी है ही ऐसी इच चीज़।
यहाँ भी यही हाल हैं..
सुन्दर लिखा है
बधाई नीलिमा जी
"कुछ बारूद से जलते हैं,
कुछ तेज़ाब से जलते हैं,
और कुछ घर में लगी आग से जलते हैं,
पर आजकल इन्टरनेट की इस दुनिया में, कुछ लोग मेरे कंप्यूटर से जलते हैं.. :)"
मेरी दुनिया.. मेरे जज़्बात..
बात चुभने वाली है :)
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