Thursday, April 18, 2013

" गर्मी की छुट्टी और माँ


 पीछे मुढ कर देखती हूँ तो याद आती हैं माँ  और मेरी गर्मी की छुट्टिया 
.जमाना अलग था  ..... उन दिनों छुट्टी का मतलब था घर सम्हालना  ..  किताबो से परहेज करना  मैं ठहरी किताबी कीड़ा  .कैसे रह सकती थी किताबो के बिना ..... मेरी सुबह अखबार के साथ होती और शाम  होती किसी न किसी नोवल संग .मांग कर पढना तब कभी बुरा नहीं माना  जाता था , जब भी किसी मित्र रिश्तेदार के यहाँ कोई किताब देख जाती झट से पढने के लिय मांग लिया करते थे  और ना  सुन ने पर बुरा भी लगता था . अब माँ तो माँ होती हैं उनको लगता की उनकी  जिद्दी सी  बेटी किताबे ही पढ़ती रहेगी तो ससुराल मैं क्या करेगी  और हमारा एक ही जवाब होता  ....... हमें कोन सा शादी करनी हैं  हम तो पढ़ेंगे  और नौकरी करेंगे  ... माँ कहती पढना  या नौकरी करना अलग होता हैं  पर घर का काम  हर लड़की को आना चाहिए   चाहे वोह खाना पकाना हो या फटे कपडे  सिलना /करीने से लगाना  . हम सोचते ही रहते  की इस बार यह होगा गर्मियों में . नानी के घर जायेंगे  बुआ के घर जायेंगे  
 पर ..........दिल के अरमान आंसुओ मैं बह गये  .......... और हमें दाखिला दिलाया गया   सिलाई कढ़ाई   की कक्षा में .पाजामा   
 सिलने से शुरुवात हुयी और  जल्दी हमने फ्रॉक सलवार कमीज और थैली वाली कट से पजामी सिलना सीख लिया  अब तो हमें भी मजा आने लगा इनसब में .और अब हम दो दिन में कुछ भी नया सिलकर फिर माँ के सामने जा खड़े होते कि  माँ बाजार से नया कपडा लाना हैं ....अब हर दो- तीन बाद नया कपडा कहा से लाती माँ  ...... हमने सोचा क चलो अब हमारी छुट्टी होगी यहाँ से  और हम फिर से सारी  दोपहर 'शिवानी " के नोवेल्स पढेंगे  .कब से " किस्श्नुली " पूरा नही हो रहा हैं  
 पर कहते हैं माँ तो माँ होती हैं ......माँ ने ताई जी और चाची जी  से कहा कि  जिसने जो सिलाना हो  नीलिमा सिलाई सीख रही हैं  इसको कपडा दे दो  .......बस जी होना क्या था .हम अकेले और हमारे पास थैला भर कपडे  दो दिन में इकठ्ठे हो गये  .... हम माँ की तरफ कातर  दृष्टि से देख रहे थे और माँ विजयी भाव से ............ इस तरह उन छुट्टियों में सीखी सिलाई हमें आज भी याद आती हैं जब हम अपने सूट काटकर उनसे कुशन बनाते हैं ................

12 comments:

विभा रानी श्रीवास्तव said...

माँ की महिमा अपरम्पार .....

नीलिमा शर्मा Neelima Sharma said...

:) thank u

Divine Anand said...

Really nice Neelima ji.

नीलिमा शर्मा Neelima Sharma said...

Thank u Ajay anad

Unknown said...

neelima bahut achchi trening hui aapki garmi ki chutiyon mai

रमा शर्मा, जापान said...

Bachpan yaad aaya

nayee dunia said...

ये सारी माएँ ऐसी ही होती है ....मेरी भी बिल्कुल होम साइंस की टीचर की तरह थी ...छुट्टियाँ हुई नही की खाना बनाना सीखो और कढ़ाई करो ....

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

:):) माँ के पास हर बात का हल होता है .... रोचक

अरुण कुमार निगम (mitanigoth2.blogspot.com) said...

सुखद अनुभूतियाँ....साझा करने हेतु आभार...

रचना दीक्षित said...

माँ की महिमा अपरम्पार है. कितनी सहजता से सीखने पर विवश किया और जो हमेशा ज्ञान और कुशलता आपके साथ रहेगा.

Jyoti khare said...


जीवन के कई अर्थो में माँ हरदम पास रहती है
आपने सहजता से माँ की उपस्थिति दर्ज करायी है
बधाई

Darshan jangra said...

रोचक