Monday, August 12, 2013

क्यों बेच रही हो ? कबाड़ी को

"मम्मा!!! क्या है आपको
?क्यों बेच रही हो ? कबाड़ी को मेरे रबड़ , शार्पनर और यह बैटमैन वाले कार्ड्स पता हैं कितनी मुश्किल से मिले थे ...और यह मेरे कॉमिक्स हाय यह स्टोरी बुक्स भी रस्किन बांड का पूरा कलेक्शन इकठ्ठा करने में मैंने कितनी बार दोस्तों के साथ बाहर बंद टिक्की मिस की ,और यह मेरी सारी खिलौना कार रखो न इनसबको वापिस उसी दादी वाले लोहे के बॉक्स में ."
बेटे की सब चीजे वापिस सहेजते हुए सोचने लगी मैं .......कि क्या मैं अपनेसामान को फेंक पाई हूँ वोह टूटा हुआ फूलदान वोह चूड़ियाँ जिन्हें बरसो से नही पहना , शादी वाले सूट , सहेलियों के दिए तोहफे . अपने हाथ से कढ़ाई किये पर अब पुराने हो चुके मेजपोश
पर सामने से हँसते हुए कहा "अच्छा बाबा रख देती हूँ सारा सामान .जब तुम्हारे बच्चे होंगे न और तुम उनको कुछ ला कर देने से मना करोगे तो तब उनको दीखाऊंगी कि कितना शैतान था तुम्हारा पापा ..अब तो खुश ना ."..
"जा कबाड़ी को बोल कल आना .पापा की अलमारी कल खोलेंगे " — feeling amused.

5 comments:

Dr. Shorya said...

बिलकुल सत्य मनोभाव

नीलिमा शर्मा Neelima Sharma said...

शुक्रिया शोर्य मालिक जी

नीलिमा शर्मा Neelima Sharma said...

शास्त्री जी मेरे लिखे शब्दों को इतना सम्मान दिए जाने का आभार

कालीपद "प्रसाद" said...

मानवीय सच को उजागर किया आपने
latest post नेता उवाच !!!
latest post नेताजी सुनिए !!!

कविता रावत said...

जो चीज दिल को छू जाती हैं उन्हें अपने से अलग करने से दिल दुखता है ...आपने बच्चे की सुनी ..बहुत अच्छा लगा ...उसकी धरोहर है ...